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प्रस्तुत लेख में कल्पप्रदीप में उल्लिखित राजस्थान प्रान्त के जैन तीर्थों का एक विश्लेषणात्मक विवरण प्रस्तुत है ।
१. अबु दगिरिकल्प
अर्बुदगिरि जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है । उत्तरकालीन जैनसाहित्य में इसके बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है । यहाँ विमलवसही और लणवसही नामक दो जिनालय विद्यमान हैं, जो अपनी . उत्कृष्ट कला के कारण जगविख्यात हैं । जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस तीर्थ का उल्लेख किया है और इसके बारे में प्रचलित मान्यताओं, विमलवसही और लूणवसही के निर्माण, विध्वंस एवं पुनर्निर्माण आदि का तिथिक्रमानुसार विवरण प्रस्तुत किया है । उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं
" पूर्व काल में श्रीरत्नमालनगरी में 'श्रीपुञ्ज' नामक एक राजा राज्य करता था । उसके 'श्रीमाता' नामक एक पुत्री थी, जो वानरमुखवाली थी । श्रीमाता को अपने पूर्वजन्म का वृत्तान्त याद था; जिसे एक दिन उसने अपने पिता से बताया। राजा ने उसे अर्बुदपर्वत पर भेजकर वहाँ स्थित कुण्ड में उसका मुख डुबवाया, जिससे वह नारी के समान मुखवाली हो गयी और वहीं तपश्चर्या करने लगी । एक दिन वहाँ एक योगी ने उसे देखा ओर उसके रूप लावण्य पर मुग्ध हो उसे अपनी पत्नी बनाना चाहा । श्रीमाता ने छल से उसका वध कर दिया और आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वह स्वर्ग गयी । तत्पश्चात् राजा ने वहीं उसका एक मन्दिर बनवा दिया । लौकिक धर्म में इस पर्वत का अर्बुद नाम पड़ने के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार यह हिमालय का पुत्र था और इसका नाम नन्दिवर्धन था । बाद में अर्बुद नाम का यहाँ अधिष्ठान होने से इसका नाम ' अर्बुदगिरि' प्रचलित हो गया । इस पर्वत पर अनेक सुन्दरसुन्दर वृक्ष हैं, इनसे बहुत सी औषधियाँ प्राप्त होती हैं । यहाँ वशिष्ठाश्रम मन्दाकिनी, अचलेश्वर, गोमुखयक्ष आदि लौकिक तीर्थ है । वि० सं० १०८८ में मन्त्रीश्वर विमल ने यहाँ 'विमलवसही' का निर्माण
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