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पत्र-प्रथम
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कार्य-सिद्धि के आवश्यक अंग
प्रिय बन्धु ।
भगवती सरस्वती का स्मरण और वन्दन पूर्वक जिज्ञासा पूर्ण तुम्हारा पत्र यथा समय मिल गया है । इसमे तुमने स्मरण-शक्ति को विकसित करने की और उसके लिये मेरे सहयोग प्राप्ति की जो अभिलाषा प्रकट की है, उसका मैं योग्य सम्मान करता हूँ। अनुभव का उचित विनिमय मेरे लिए आनन्द का विषय है, इसलिए आभार ज्ञापन की कोई आवश्यकता नही ।
अब मुद्दे की बात । अगर तुम्हे स्मरण शक्ति का विकास करना ही हो तो उसके लिए सबसे पहले दृढ निश्चय करना पड़ेगा। यथार्थ मे दृढ निश्चय के बिना किसी भी कार्य की सिद्धि नही हो सकती। "चलो, प्रयास कर ले, कार्य सम्पन्न होगा तो ठीक और न होगा तब भी ठीक" इस प्रकार के ढीले-ढाले, अधकचरे विचारो से कार्य प्रारम्भ करने वाला थोड़ी-सी उलझन, जरा-सी प्रतिकूलता
और तनिक सी मुसीबत आते ही पीछे हट जाता है। इसलिए ही प्राज्ञ पुरुष ने "देह वा पातयामि कार्य वा साधयामि" यह सकल्प-मय भावना-सूत्र प्रसारित किया है। इसलिए इस बात का तुम दृढ निश्चय करो कि-"मैं अपनी स्मरण-शक्ति को अवश्य विकसित करूंगा।"
तुम्हारा यह निश्चय कोई शेख-चिल्ली का विकल्प नही है, कुतुहल-प्रिय मन की तरग मात्र नहीं है, किन्तु सबल श्रात्मा की दृढ़-प्रतिज्ञा है । ऐसा विचार निरन्तर रखोगे तो सफलता का द्वार सत्वर ही खुल जायगा। इसलिए एक नोट-बुक लेकर उसके प्रथम पत्र के ऊपरी भाग में निम्नलिखित शब्द अकित करो