Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
बाहुयुग्मं रराजास्य कामिनी मोहपाशकं । । कम्र शाखायुगं कल्पवृक्षस्येव बहुप्रदम् ॥ ६ ॥ कटितटसुवृक्षेऽस्य वसते मदनान्वितः । कांचीदाममहानागो रणक्ति किण शब्दकः ॥ १० ॥ पादद्वयं शुभाकारं नानालक्षणलक्षितम् ।
श्रेणिकस्य वभौ रम्यं जितानेकमहाद्विषः ॥ ११ ॥ स्फुरायमान दीप्तिधारी बालक श्रेणिक का मुख यद्यपि चन्द्रमा के समान दैदीप्यमान था तथापि निर्दोष सदा प्रकाशमान और समस्त प्रकार के कलंकों से रहित ही था॥७॥ विशाल एवं अतिशय मनोहर हारों से भूषित उसका वक्षःस्थल राज्य-भार के धारण करने के लिए विस्तीर्ण था और अनेक प्रकार की शोभाओं से अत्यन्त सुशोभित था ।।८॥ कामिनी स्त्रियों के फंसाने के लिए जाल के समान उसकी दोनों भुजाएँ ऐसी जान पड़ती थीं मानो याचकों को अभीष्ट दान की देनेवाली दो मनोहर कल्पवृक्ष की शाखा ही हैं । उसके कटिरूपी वृक्ष पर, करधनी में लगी हुई छोटी-छोटी घण्टियों के व्याज-से शब्द करता हुआ, कामदेव सहित, करधनी रूपी महासर्प निवास करता था श्रेणिक के शुभ आकृति के धारक, अनेक प्रकार के ॥१०॥ उत्तमोत्तम लक्षणों से युक्त और अतिशय कान्ति के धारण करनेवाले, दोनों चरण अत्यंत शोभित थे॥११॥
विवेकः सह संपत्या वर्द्धते देह सद्मनि । ज्ञानं च कलया साकं तस्य पुण्य सुभागिनः ।। १२ ।। बुद्धया बाल्येऽपि वृद्धोभूत्सतां मान्यो विचक्षणः । असाधारण सौभाग्य बुद्धयादिगुण लिंगितः ॥ १३ ॥ तीर्णः शास्त्रार्णवो येन प्रयासेन विना चिरात् । शस्त्रविद्यासमालेभे क्षात्रधर्मस्य कारणम् ॥ १४ ॥ गुणेन लिंगितो देहो मेधया ज्ञानमुत्तमं ।
दानेनालंकृतो हस्तोऽभवत्तस्य शुभागिनः ।। १५ ॥ तथा उस पुण्यात्मा एवं भाग्यवान कुमार श्रेणिक के अतिशय मनोहर शरीररूपी महल में सम्पत्ति के साथ विवेक बढ़ता था, और अनेक प्रकार की राजसम्बन्धी कलाओं के साथ ज्ञान वृद्धि को प्राप्त होता था ।।१२।। यद्यपि कुमार श्रेणिक बाल-कथा तथापि बुद्धि की चतुराई से वह वड़ा ही था और सज्जनों को मान्य था वह हरेक कार्य में चतुर, और सौभाग्य बुद्धि आदि असाधारण गुणों का भी आकर था ॥१३॥ इसने बिना परिश्रम के शीघ्र ही शास्त्ररूपी समुद्र को पार कर लिया था और क्षत्रिय धर्म की प्रधानता के कारण अनेक प्रकार की शस्त्रविद्याएँ भी सोख ली थीं॥१४॥ तथा भाग्यशाली जिस बालक श्रेणिक के अनेक प्रकार के गुणों से मण्डित उत्तम ज्ञान, बुद्धि से भूषित था, उसके हाथ दान से शोभित थे ॥१५॥
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