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[ ३ ]
'यातुयाम
संवर संवुत्तो'
इस में यातुयाम शब्द बड़ा ही सार गर्भित है । पाश्चात्य विद्वान् जैकोबी ने लिखा है कि यहां यातुयाम शब्द महावीर और २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ इन दोनों के सिद्धान्त प्रचार की भिन्नता दिखाता है । पा नाथ के समय चार ही महाव्रत थे । जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, और परिग्रह त्याग | ब्रह्मचर्य नामक महाव्रत को तो महावीर स्वामी नेही सम्मिलित किया श्रतएव पार्श्वनाथ का धर्म 'यातुयाम' और महावीर का 'पंचयाम' है । इस प्रकार 'पंचयाम' का प्रचार करने वाले भगवान् महावीर से भिन्न 'चातुयाम' के प्रचारक जैनधर्म के २३ वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी के ऐतिहासिक व्यक्तित्व में कोई संदेह नहीं रह जाता ।
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इसके अतिरिक्त बंगाल का सम्मेत शिखर जो पार्श्वनाथ पहाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है जैनों के प्रधान तीर्थों में से एक हैं । भद्रबाहु रचित 'कल्प सूत्र' जिस का रचनाकाल ईसा पूर्व ३०० वर्ष करीब है उस में जो श्री पार्श्वनाथ जी के विषय में वर्णन आता है उस का एक उद्धरण इस प्रकार है:
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निर्वाणमासन्न' संमेताद्रौ ययौ प्रभुः । ( कल्पसूत्र - पृष्ठ १६८ )
अर्थात् निर्वाण के समय श्री पार्श्वनाथ प्रभु इसी संमेत शिखर पर आए और यहीं से मोक्षपद को प्राप्त हुए ।
इसी प्रकार हेमचन्द्राचार्य विरचित “त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में भी:
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