Book Title: Shatrunjay Kalp
Author(s): Amrendrasagar, Mahabhadrasagar
Publisher: Jain Agam Mandir Samstha
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
शत्रुज्जय
कल्पवृ०
॥ ४६८ ॥
25 25 25 25 25 2552525225
www.kobatirth.org
श्री नन्दिषेणसूरि - अजितशान्तिस्तव - मुक्तिगमनसम्बन्धः । नेमिवणेण जत्ता- गएण जहिं नंदिसेणजइवइणा | विहिओऽजियसंतिथओ जयउ तयं पुंडरी तित्थं ।। २१ ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री नेमिनाथस्य वचनेन यात्रागतेन नन्दिपेणयतिपतिना - नन्दिषेणसूरिणा ' विहित' चक्रे ' अजिशान्तिस्तवः - द्वितीय- पोडशजिन ' स्तवः ' स्तोत्रं यत्र सिद्धाचले तत्तीर्थं पुण्डरिकाभिधं जयताच्चिरम् ॥ श्री नेमीशान्तिकेऽन्येद्यु- र्नन्दिषेण महीपतिः । धम्मं जीवदयामूलं श्रोतुं भावादुपागमत् ॥ १ ॥ * रम्यं रूपं करणपटुताऽऽरोग्यमायुविशालं, कान्ता रूपविजितरतयः सूनवो भक्तिमन्तः 15 षट् खण्डोर्वीतलपरिवृढत्वं यशः क्षीरशुभ्रं, सौभाग्यश्रीरिति फलमहो धर्म्मवृक्षस्य सर्वम् ॥ २ ॥ * चत्वारः प्रहरा यान्ति देहिनां गृहचेष्टितैः । तेषां पादे तदद्वे वा कर्त्तव्यो धर्म्मसंग्रहः ॥ ३ ॥ " दो चैव जिणवरेहिं जाइजरामरणविष्यमुक्केहिं । लोगम्मि पहा भणिया सुसमण सुसावओ वावि ॥ १ ॥ " * यात्रार्थ भोजनं येषां दानार्थे च धनार्जनं । धर्मार्थं जीवितं येषां ते नरा स्वर्गगामिनः ॥ ४ ॥ अनित्यं निखिलं विश्वं पुत्रपौत्रादिकं खलु । ज्ञात्वा राज्यं स्वपुत्राय नन्दिषेणनृपो ददौ ॥ ५ ॥
For Private and Personal Use Only
1525752525252525252525525
॥ ४६८ ॥

Page Navigation
1 ... 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581