Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak

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Page 10
________________ षित ने लख्यो धर्म निज पुन आचार। लोगन हित पथ रच्यो ग्रन्थ यह यथा सेतु रच नृप उपकार ॥२॥ दयानन्द ने एस लिखा था सत्यार्थ प्रकाशेठीक । मर्तिपूजाके आरंभक हैं जैनी या जग में नीक ॥ पर अबलोकन कर यह पुस्तक संशय सकल भये अब छीन । तांत धन्यवाद तुहि देवी तू पार्बती यथार्थ चीन । ३ । साधारण अवला में ऐसी होइ न कबहू उत्तम बुद्ध । तांते यह अवतार पछानो कह शिवनाथ हृदय कर शुद्ध ॥ बार २ हम ईश्वर से अब यह मांगे हैं बर कर जोर । चिरंजीवि रह पर्वत तनया रचे ग्रंथ सिद्धान्त निचोर।४। दोहा-पण्डित योगीनाथ शिव । लिखी सम्मति आप ॥

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