Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 18
________________ सत्यामृत -- me - - - - करता है। उसपर वह थोडाबहुत भी ध्यान नहीं वक्तव्य में वह यह भूल जाता है कि भाफ की देता। इससे वह सत्य से वञ्चित रहता है। ताकत का साधारण ज्ञान शताब्दियो तक लाखो म आदमियों को रहने पर भी गजिन न बनसका, २-जब स्वत्वमोही देखता है कि उपेक्षा श्राद तब जिसने जिन बनादिया उनकी महत्ता इस करने से काम नहीं चलेगा तब वह किसी न दृष्टि से हमारे पानमयों से कई गुणी है। किसी तरह विरोध करने लगता है। इससे वह तो सत्य से पश्चित रहता ही है पर दूसरो को भी इसीप्रकार एक ही आदमी पिता की अपेक्षा पुत्र और पुत्र की अपेक्षा पिता है इसका पता होने से सत्य से वंचित रखने की कोशिश करता है। ही अनेकान्त सिद्धान्त के आविष्कार का श्रेय ३-इस स्वत्वमोह के कारण मनुष्य ज्ञान अपहरण नही किया जासकता। या अनेकान्त विज्ञान की चुरी तरह अवहेलना करता है। इस का ज्ञान होने से ही सपिजवाद ( Rclaurity) से ज्ञान विज्ञान की हानि नही होती किन्तु की महत्ता का श्रेय अपहाण नहीं किया जासमनुष्य की हानि होती है और मनुण्य अपनी कता । इनके श्रेय का अपहरण करना हास्यासद मूढता का परिचय देता है। बहुत तो ऐसा ही है जैसे किसी महाकवि की रचना से लोग कहने लगते हैं कि विज्ञान की प्रतिम पर यह कह दिया जाय कि "इस कविता में से अंतिम स्रोतें हमारी मान्यताओं का समर्थन जितने स्वर व्यंजन पाये हैं वे तो हमारे घर के करती हैं, ऐसे लोग विज्ञान की वर्णमाला भी बच्चे बच्चे को मालूम हैं। इसमें महाकवि की न समझकर उसके नाम पर मनचाही कल्पनाएँ क्या महत्ता है ? " जैसे स्वर व्यञ्जन का साधा. किया करते हैं और उनसे अपनी रूढ़ियो या रण जान होने और उनकी अमुक क्रम से रचना मान्यताओं का समर्थन कराया करते हैं। चोटी करके एक काव्य बनाने में जमीन आसमान का के द्वारा शरीर में बिजली आती है उससे शक्ति अन्तर है उसी प्रकार साधारण ज्ञान से वैज्ञानिक बढ़ती है यह वैज्ञानिक वात है इसलिये चोटी श्राचिष्कारों में अन्तर हैं। रखना अच्छा ।' इस तरह का इनका वैज्ञानिक -कुछ लोग ग्रंथ सम्प्रदाय मत दि के समर्थन रहता है। वे यह नहीं सोचते कि तब तो स्वत्वमोहके कारण शोकी हास्यास्पद धीचातानी पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को ज्यादा बिजली करते हैं। वे दूसरों का श्रय लूटने के लिये उनकी मिलना चाहिये, उनकी चोटी बडी होती है। वात पहिले लिखलेते हैं और फिर कोप व्याकरण अथवा चोटीवालो पर खास तौर पर बिजली का कचूमर बना बनाकर शादा से इच्छित अर्थ गिरना चाहिये। पर उन्हें अपनी तारीफ से मतलब, गहरे विचार से नहीं । इसप्रकार प्रायः हर खींचवे रहते हैं। कोई भी वास हो वे किसी न एक धर्मवाला अपनी रूढ़ियो पर विज्ञान की झूठी किसी तरह से उसे अपनी बात सिद्ध कर डालते छाप लगाया करता है। यह स्वत्व मोह का परि हैं। इसके लिये अवसर के बिना ही अलंकार णाम है। इस से मनुष्य आवश्यक सुधार नहीं एकाक्षरी कोष आदि का उपयोग करते हैं, सीधे तथा प्रकरण संगत अर्थ को छोड़कर कुटिल कर पाता। यर्थ निकाल करते हैं। इसके बाद या कभी कोई कोई लोग इसप्रकार की हास्यास्पद कमी इसके पहिले ही वे यहा तक कहने का बातें तो नहीं करते किन्तु सामान्य की ओट में दुःसाहस का बालते हैं कि ये सब तो हमारी ही विशेष का मूल्य छिपाकर झूठी आत्मश्लाघा बातें हैं, इन्हें दूसो ने हमारे प्रयों से चुरा लिया को श्रेय का अपहरण करते है। है। वे यह नहीं सोचते कि श सन्टियों से जिन का मंजिन बनानेवाले ने क्या प्रथा को तुम्हारे संकड़ो विद्वान पढ़ते रहे और घडी वात की भाफ में बड़ी ताकत है यह तो उन्हें जिन आविष्कारों को गंध भी न मिली. एक हमारे देशवालो को सदा से मालूम था" इस कदम चनने लायक रास्ता भी न सझा वे दसरो

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