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एवं साधना की सौरभसभर महक रहती हैं। पंडित मरण, समकित-दृष्टि, पुद्गल, स्वाध्याय, और श्रुतज्ञान जैसे विषय कितनी स्वाभाविकता से दर्शाये गये हैं ! जीव और शिव, आत्मा और परमात्मा, मनुष्य एवं प्रभु महावीर के बीच संवाद की खोज करने का मार्ग इस पुस्तक में आलिखित है। संक्षिप्त फिर भी प्रभावक ढंग से लिखे गये प्रत्येक प्रकरण में अध्यात्म के महासागर में गोता लगा के ढूंढे हुए मोती बिखरे पड़े हैं। भौतिकवाद से पीडित युग में प्रत्येक साधक के लिए यह मोती जीवन-पथ-प्रदर्शक बनेगा।
- कुमारपाल देसाई
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