________________ 262 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 अथागमात् प्रतिनियतकर्मफलसंबन्धसिद्धिः, तथा सति परलोकास्तित्वमप्यागमादेव सिद्धमिति किमनुमानप्रयासेन ?! न चागमादपि परलोकसिद्धिः, तस्य प्रामाण्याऽसिद्धेः / न चाप्रमाणसिद्धं परलोकादिकमभ्युपगंतु युक्तम् , तदभावस्यापि तथाऽभ्युपगमप्रसंगात् / तन्न परलोकसाधकप्रमाणप्रतिपादनमकृत्वा 'भव'शब्दव्युत्पत्तिरर्थसंस्पशिन्यभिधातु युक्ता / डित्थादिशब्दव्युत्पत्तितुल्या तु यदि क्रियेत तदा नास्मभिरपि तत्प्रतिपादकप्रमाणपर्यनुयोगे मनः प्रणिधीयते--इति पूर्वपक्षः। [परलोकसिद्धावुत्तरपक्षः] ___ अत्रोच्यते यदुक्तम् 'पर्यनुयोगमात्रमस्माभिः क्रियते' इति तत्र वक्तव्यम्-पर्यनुयोगोऽपि क्रियमाणः किं प्रमाणतः क्रियते, उताऽप्रमाणतः? यदि प्रमाणतस्तदयुक्तम् , यतस्तकार्यपि प्रमाणं कि प्रत्यक्षम् उतानुमानादि ? यदि प्रत्यक्षम् , तदयुक्तम् , प्रत्यक्षस्याऽविचारकत्वेन पर्यनुयोगस्वरूपविचाररचनाऽचतुरत्वात्। न च प्रत्यक्षस्यापि प्रमाणत्वं युक्तम् , भवदभ्युपगमेन तल्लक्षणाऽसम्भवात् / तदसम्भवश्व स्वरूपव्यवस्थापकधर्मस्य लक्षणत्वात / तत्र प्रत्यक्षस्य प्रामाण्यस्वरूपव्यवस्थापको धमोऽविसवादित्वलक्षणोऽभ्युपगन्तव्यः / तच्चाऽविसंवादित्वं प्रत्यक्षप्रामाण्येनाऽविनाभूतमभ्युपगम्यम् , अन्यथाभूतात् ततः कर्म का इस जन्म में यही शुभाशुभ फल है इस प्रकार के नियमगभित कर्म और फल का सम्बन्ध ही असिद्ध है, अतः अनुमान से परलोक का अस्तित्व सिद्ध किया जाय तो भी वह निरर्थक है / [आगमप्रमाण से परलोकसिद्धि अशक्य ] .. यदि कहें कि-'नियम गभित कर्म-फल के सम्बन्ध की सिद्धि आगम से हो जायेगी'-तब तो परलोक का अस्तित्व भी आगम से ही सिद्ध कर लो! क्यों अनुमान का व्यर्थ कष्ट करते हो? ! तथा, आगम से भी परलोक सिद्धि की आशा नहीं है, क्योंकि आगम का प्रामाण्य ही सिद्ध नहीं है। प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम, किसी भी प्रमाण से जब परलोक आदि सिद्ध नहीं है तो उसका सैद्धान्तिक रूप में स्वीकार करना अनुचित है, क्योंकि उसके विपरीत, परलोक के अभाव आदि का भी तब तो स्वीकार करना उचित गिना जायेगा। इस प्रकार जब-तक परलोक की सिद्धि के लिये ठोस प्रमाण पेश न किया जाय तब तक 'भव' शब्द की व्युत्पत्ति को सार्थक यानी अर्थस्पर्शी कह नहीं सकते / हाँ, यदि आप डित्थ-डवित्थ आदि शब्द जैसे व्युत्पत्तिविहीन यादृच्छिक यानी अर्थशून्य होते हैं उसी प्रकार 'भव' शब्द को भी अर्थशन्य मान ले तब तो हम भी भवशब्दार्थ परलोकादि की सिद्धि करने वाले प्रमाण के पर्यनुयोग में हमारे चित्त को सावधान नहीं करेंगे / पूर्वपक्ष समाप्त / [परलोकसिद्धि-उत्तरपक्ष ] नास्तिक मत के प्रतिवाद में अब करते हैं नास्तिक ने जो यह कहा हम तो केवल पर्यनुयोग मात्र कर रहे हैं-इसके ऊपर पूछना है कि वह प्रमाणभित्ति के अवलम्बन से करते हो या विना प्रमाण ही? अगर कहें कि प्रमाण से करते हैं तो वह ठीक नहीं है, क्योंकि दिखाईये, किस प्रमाण से पर्यनुयोग करते हो प्रत्यक्ष या अनुमानादि प्रमाण से ? यदि प्रत्यक्ष से, तो वह अयुक्त बात है, क्योंकि पर्यनुयोग यह विचारस्वरूप अर्थात् उहापोहात्मक है, उसके सूत्रण का कौशल प्रत्यक्ष में नहीं है /