________________ 574 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड-१ . अथाऽञ्जनादेरेव तद्धेतुत्वे सर्वस्य तद्वतः स्व्याद्याकर्षणप्रसक्तिः, न चाजनादौ सत्यप्यविशिष्टे तद्वतः सर्वान् प्रति तदागमनम् , ततोऽवसीयते 'तविशेषेऽपि यद्वैकल्यात् तन्नेति तदपि कारणम् नाऽञ्जनादिमात्रम्' इति / तदेतत् प्रयत्नकारणेऽपि समानम् , न हि सर्व प्रयत्नवन्तं प्रति ग्रासादय उपसर्गन्ति, तदपहारादि दर्शनात् / ततोऽत्राप्यन्यत् कारणमनुमीयताम , अन्यथा न प्रकृतेऽपि, अविशेषात् / ततः प्रयत्नवदञ्जनादेरपि तं प्रति तदाकर्षणहेतुत्वात् कथं न संदेहः ? अञ्जनादेः स्त्र्याद्यकर्षणं प्रत्यकाररपत्वे गन्धादिवतु तदथिनां न तदुपादानम् / न च दृष्टसामर्थ्यस्याप्यञ्जनादेः कारणत्वक्लप्तिपरिहारेणान्यकारणत्वकल्पने भवतोऽनवस्थामुक्तिः / अथाजनादिकमदृष्टसहकारित्वात तत्कारणं न केवलमिति / नन्वेवं सिद्धमदृष्टवदञ्जनादेरपि तत्र कारणत्वम् , ततः संदेह एव 'कि ग्रासादिवत् प्रयत्नसधर्मणाऽऽकृष्टाः पश्वादयः, किं वा स्व्यादिवदञ्जनादिसधर्मणा तत्संयुक्तेन द्रव्येण' इति संदिग्धं 'गुणत्वात्' इत्येतत् साधनम् / सपरिस्पन्दात्मप्रदेशमन्तरेण ग्रासाद्याकर्षणहेतोः प्रयत्नस्यापि देवदत्तविशेषगुणस्य परं प्रत्यसिद्धत्वात् साध्यविकलता चात्र दृष्टान्तस्य / ..... होने वाले स्त्री आदि स्थल में प्रयत्न के समान किसी गुण के न रहने पर भी अञ्जनादि द्रव्य से आकर्षण दिखता है अतः आपके अनुमान का हेतु भा साध्यद्राहा बन जायेगा। यदि ऐसा कह किहम स्त्री आदिस्थल में भी कवलादि के दृष्टान्त से प्रयत्न समान (अदृष्ट) गुणात्मक हेतु (कारण) से ही आकर्षण होने का अनुमान करेंगे अतः वहाँ साध्य सिद्ध होने से हेतु साध्यद्रोही नहीं होगा-तो इसी तरह हम भी कहेंगे कि कवलादि स्थल में हम भी अञ्जनादि द्रव्य के समानधर्मी (द्रव्य) पदार्थ से ही आकर्षण होने का अनुमान, स्त्री आदि के दृष्टान्त से करेंगे, तो वहां भी हमारा साध्य सिद्ध होने से हेतु साध्यद्रोही नहीं बनेगा / यदि ऐसा कहें कि कवलादिस्थल में तो प्रयत्न का सामर्थ्य दृष्ट है अतः आकर्षणहेतुभूत द्रव्यविशेष की कल्पना व्यर्थ है-तो हम भी स्त्री आदि स्थल में कहेंगे कि वहां अञ्जनद्रव्य का सामर्थ्य दृष्ट है अतः वहाँ आकर्षणहेतुभूत गुणविशेष की कल्पना करना व्यर्थ है। कल्पना की व्यर्थता दोनों जगह समान है। [ अञ्जन और प्रयत्न दोनों स्थल में अन्य की कारणता समान ] यदि यह कहा जाय-अञ्जनादि ही यदि आकर्षण हेतु होता तो अञ्जनादि लगाने वाले सभी .. के प्रति स्त्री आदि का आकर्षण दिखाई देना चाहिये / किन्तु, समानरूप से अंजनादि के सर्वत्र होते हए भी सभी अञ्जन लगाने वालों की ओर स्त्री आदि का आगमन होता नहीं है, अत: मालूम होता है - कि अञ्जनादि समानरूप से होने पर भी जिसके अभाव से सभी की ओर स्त्री आकर्षण नहीं होता -वर भी उसका कारण है, सिर्फ अंजनादि ही नहीं / इस प्रकार प्रयत्नसमान गुण अदृष्ट की गूणरूप में सिद्धि हो सकती है। तो यह बात प्रयत्नकारणता स्थल में अर्थात् कवल के लिये भी समान है। देखिये. प्रयत्न वाले सभी के प्रति कवलादि का संचरण देखा नहीं जाता, कभी कभी प्रयत्न के रहने पर भी कवल का अपहरण दिखाई देता है / अत: कवलादि के देवदत्त की ओर संचरण में अन्य भी कोई (द्रव्यभूत) कारण है यह अनुमान किया जा सकेगा। यदि यहाँ ऐसा अनुमान नहीं मानेंगे तो स्त्री आदि स्थल में भी वह नहीं हो सकेगा, क्योंकि दोनों ओर अनुमान की उद्भावना समान है। जब इस प्रकार प्रयत्न की तरह अंजनादि में भी आकर्षणहेतुता अभंग है तब पूर्वोक्त संदेह क्यों नहीं होगा? यदि अंजनादि को स्त्री-आकर्षण का कारण नहीं मानेंगे तो सुगन्ध के अभिलाषी जैसे