________________ 648 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 सन” मामा कि च, दृश्य-विकल्प्ययोरेकीकरणं दृश्ये विकल्प्यस्याऽध्यारोपः, स च गृहीतयोरगृहीतयो ? यदि गृहीतयोस्तदा दृश्य-विकल्प्ययोर्भेदेन प्रतिपत्तेर्न दृश्ये विकल्प्याध्यारोपः, नहि घटपटयोभिन्नस्वरूपतया प्रतिभासमानयोरेकस्याऽपरत्रारोपः, अतिप्रसंगात् / नाप्यगृहीतयोः स सम्भवति, अतिप्रसंगादेव / न च दृश्यबुद्धौ विकल्प्यं प्रतिभाति, नापि विकल्प्यबुद्धौ दृश्यम् / न चैकबुद्धावप्रतिभासमानयो रूप-रसयोरिव परस्पराध्यारोपः / सादृश्यनिबन्धनश्चान्यत्राध्यारोप: उपलब्धः, वस्त्ववस्तुनोश्च नीलखरविषाणयोरिव सारूप्याभावतो नाध्यारोप इति प्रतिपादितम् / न च दृश्याध्यवसायिविकल्प्यबद्धयत्पाद एव तदध्यारोपः, तबुद्धेः सदृशपरिणामसामान्यव्यवस्थापकत्वोपपत्तेरनन्तरमेव तस्या वस्तुस्वरूपग्राहिसविकल्पकाध्यक्षरूपत्वेन व्यवस्थापितत्वात् / तथा, अनुमानेनापि परिच्छिद्यमानेऽर्थान्तरव्यावत्तिरूपेऽनर्थरूपे सामान्ये बहिष्प्रवत्त्ययोग एव / 'नाऽतद्रूपव्यावृत्तिमात्रविषयमनुमानम् , अतद्रूपपरावृत्तवस्तुमात्रविषयत्वादिति चेत् ? किं तद् दृश्य में विकल्प्य के अध्यारोप से शब्द द्वारा स्वलक्षण में प्रवृत्ति हो सकती है-तो यह ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर गाय की बुद्धि होने पर एकीकरण के द्वारा अश्वाभिमुख. प्रवृत्ति होने की आपत्ति अचल है / तदुपरांत, एकीकरण की बात भी असंगत है क्योंकि विकल्पविषयीभूत सामान्य तो बौद्ध मत में अवस्तुभूत है, अतः दृश्य के साथ उसका कुछ भो सारूप्य (समानत्व) हो नहीं सकता। यदि उन दोनों में आप कुछ सारूप्य होने का मान्य करते हैं तब तो 'दृश्य-विकल्प्य का एकीकरण' इत्यादि वाग्जाल का क्या प्रयोजन है ? साफ साफ ऐसा ही क्यों नहीं कहते हैं कि वही स्वलक्षणरूप दृश्य वस्तु सामान्यज्ञान में भासित होती है और प्रतिभास होने से ही तदभिमुख प्रवृत्ति होती है / क्योंकि, अवस्तुभूत पदार्थ के साथ वस्तु का सारूप्य तो सम्भव ही नहीं है। [दृश्य-विकल्प्य का एकीकरण अशक्य ] तथा, दृश्य में विकल्प्य का अध्यारोप यही दृश्य और विकल्प्य का एकीकरण कहते हो तो यहाँ दो विकल्प हैं-a दोनों के-दृश्य और विकल्प्य के गृहीत रहने पर यह अध्यारोप मानते हो या b अगहीत रहने पर भी? a गृहीत रहने पर तो दृश्य और विकल्प्य का भिन्न भिन्नरूप से ग्रहण हो चुका फिर दृश्य में विकल्प्य के अध्यारोप की बात ही कहाँ रही? भिन्न-भिन्नस्वरूप से भासते हए घट-पट में, एक का दूसरे में आरोप होता नहीं है, यदि भिन्न भिन्नरूप में भासमान दो पदार्थ में भी एक का दूसरे में आरोप मानेंगे तो घट में भी पट का आरोप मानने की आपत्ति आयेगी। b दृश्य विकल्प्य अगृहीत रहने पर तो आरोप का नितान्त असंभव है, अन्यथा अगृहीत घट का भी अगृहीत पट में आरोप मानना पडेगा। दूसरी बात यह है कि दृश्य की बुद्धि में विकल्प्य भासित नहीं होता और विकल्प्य की बुद्धि में दृश्य का प्रतिभास नहीं होता तो फिर दोनों का एकीकरण कैसे करेंगे ? एक बुद्धि में जब तक रूप और रस का प्रतिभास न हो तब तक परस्पर के अध्यारोप की जैसे सम्भावना नहीं है इसी तरह दृश्य और विकल्प्य का भी परस्पर अध्यारोप सम्भव नहीं है। यह भी सूज्ञा है कि एक वस्तु का अन्यत्र आरोप सादृश्यमूलक होता है। किन्तु, वस्तु और अवस्तु में कोई सादृश्य ही नहीं है जैसे नील पदार्थ और खरविषाण में, इसलिये तन्मूलक अध्यारोप भी नहीं हो सकता हैयह पहले कहा जा चुका है / "दृश्य के अध्यवसायवाली विकल्प बुद्धि का उद्भव यही अध्यारोप है" ऐसा भी नहीं मान सकते, क्योंकि ऐसी बुद्धि से ही हम सदृशपरिणामात्मक सामान्य की सिद्धि करते हैं, तथा यह बुद्धि वस्तुस्वरूपस्पर्शी सविकल्पप्रत्यक्षरूप है यह हमने सिद्ध कर दिखाया है। -