________________ प्रथमखण्ड-का० १-ईश्वरकर्तृत्वे उत्तरपक्षः 499 अथ तत्सहिताव साध्यनिर्देशात् तदभावसिद्धिः, कथं साकल्येनाऽनिश्चितव्यतिरेकात कार्यत्वानित्यव्यतिरिक्तानां सर्वेषामंकुरादीनामबुद्धिमत्कारणत्वाभावसिद्धिः ? तदभावाऽसिद्धौ च न साकल्येन व्यतिरेकनिश्चय इति इतरेतराश्रयदोषः कथं न स्यात् ? तदेवं व्याप्त्या व्यतिरेकाऽसिद्धौ न साकल्येना. न्वयसिद्धिः, तदसिद्धौ च न व्यतिरेकसिद्धिरिति न कार्यत्वादेर्हेतोः प्रकृतसाध्यसाधकत्वम् / ____ न च सर्वानुमानेष्वेष दोषः समानः अन्यत्र विपर्यये बाधकप्रमाणबलाद-वय-व्यतिरेकसिद्धेः / न च प्रकृते हेतौ तदस्तीत्यसकृदावेदितम् / तेन 'साध्याभावे हेतोरभाव: स्वसाध्यव्याप्तत्वादेव सिद्धः' इति निरस्तम् , यथोक्तप्रकारेण स्वसाध्यव्याप्तत्वस्य प्रकृतहेतोरसंभवात् / 'नापि धर्म्यसिद्धता' इत्येतदपि निरस्तम्-धर्म्यसिद्धत्वस्य प्राक् प्रतिपादितत्वात् / कार्यकारणसंघात' इत्यादिकस्तु ग्रन्थोऽयुक्तत्वेन प्रतिपादितः / अत एवेश्वरावगमे प्रमाणाभावः, तत्प्रतिपादकप्रमाणस्य समानदोषत्वेनान्यस्याऽप्यचेतनोपादानत्वादेनिसकृतत्वात् / [विपक्ष में हेतु के अभाव की सिद्धि में अन्योन्याश्रय ] यदि कहें केवल पक्ष में अन्तर्भाच मात्र से साध्याभाव की निवृत्ति सिद्ध नहीं होगी किन्तु हेतुप्रयोग के साथ जिसका पक्षरूप से निर्देश करेंगे, उसमें साध्याभाव की निवृत्ति अथवा साध्य की सिद्धि अवश्य होगी - तो यहाँ प्रश्न है कि जब अबुद्धिमत्कारणजन्य सभी पदार्थ से कार्यत्व की निवृत्ति सिद्ध नहीं है सिर्फ नित्य अबुद्धिमत्कारणक पदार्थ से ही कार्यत्व की निवृत्ति सिद्ध है तो नित्यभिन्न अंकुरादि सकल पदार्थों से अबुद्धिमत्कारणकत्व की निवृत्ति किस तरह सिद्ध होगी ? जब तक यही असिद्ध है तब तक सकल विपक्ष से हेतु की व्यावृत्ति भी कैसे सिद्ध होगी ? अर्थात् यहाँ इतरेतराश्रय दोष क्यों नहीं होगा ? इतरेतराश्रय इस प्रकार होगा-सर्व विपक्ष में से हेतु की निवृत्ति सिद्ध होने पर ही अंकुरादि में कार्यत्व हेतु से अबुद्धिमत्कारणत्वाभाव सिद्ध होगा, और उसके सिद्ध होने पर अंकुरादि विपक्ष न रहने से अन्य सकल विपक्ष में से हेतु की निवृत्ति सिद्ध होगी, फलतः दोनों में से एक भी सिद्ध नहीं होगा / इस प्रकार सकल विपक्ष से हेतु (कार्यत्व) का व्यतिरेक ही जब सिद्ध नहीं ..है तब सर्वत्र बुद्धिमत्कारणत्व के साथ उसकी अन्वयव्याप्ति भी कैसे सिद्ध होगी? अन्वय असिद्ध होने पर उसके बल से भी व्यतिरेक की सिद्धि नहीं होगी। अत: कार्यत्व हेतु से बुद्धिमत्कारणत्व रूप साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती। [प्रसिद्ध अनुमानों में विपक्ष में बाधक का सद्भाव ] 'यह दोष सभी अनुमान में प्रसक्त हो सकता है'-ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि विपक्ष में धूमादि हेतु के रह जाने में बाधक प्रमाण के बल से धूमादि हेतु में अग्नि के अन्वय-व्यतिरेक की सिद्धि निर्बाध होती है। आपके कार्यत्व रूप हेतु में विपक्षबाधक प्रमाण न होने से अन्वय-व्यतिरेक का अभाव कितनी बार दिखा चुके हैं। इससे यह कथन भी-हेतु अपने साध्य के साथ व्याप्तिवाला होने से ही, 'साध्य न होने पर हेतु का न होना' इस प्रकार का व्यतिरेक सिद्ध हो जाता है-यह कथन [ पृ० 394.-10 ] भी परास्त हो जाता है पूर्वोक्त रीति से प्रकृत हेतु में अपने साध्य की व्याप्ति ही सम्भव नहीं है / अत एव “धर्मी भी असिद्ध नहीं है" ऐसा जो आपने कहा है [ पृ० 364-10 वह भी परास्त हो जाता है, क्योंकि धर्मी भी असिद्ध है यह पहले कह दिया है। [ प० ४१'इसलिये पृथ्वी आदि कार्य-कारण समूह प्रमाणसिद्ध है' यह कथन भी अयुक्त फलित हुआ / तात्पर्य,