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आचार्य नेमिचन्द्रसूरि कृत रयणचूडरायचरियं में वर्णित शिक्षा एवं विद्याएँ
... हुकमचंद जैन
आचार्य नेमिचन्द्र सूरि अपर नाम देवेन्द्र गणि चन्द्र कुल के वृहद्गच्छीय उद्योतन सूरि के प्रशिष्य एवं आम्रदेव सूरि के शिष्य थे। ये गुजरात के राजा कर्ण के समकालीन होने के कारण ११वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं १२वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के माने जाते हैं इन्होंने अपने ग्रन्थों कि रचना प्राकृत भाषा में की है । ये रचनाएँ गद्य-पद्य एवं चम्पू शैली में हैं।
रचनाएं :- (१) महावीरय चरियं (२) उत्तराध्ययन वृत्ति (उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका) (३) आख्यानक मणिकोश (४) आत्मबोध कुलक (५) रयणचूडरायचरियं हैं । ये रचनाएं अणहिल्लपाटपुर में श्री कर्ण राजा के राज्य में दोहट्ठी (श्रेष्ठी) के द्वारा वि. सं. ११४१ में रची गईं । रयणचूडरायचरियं की भाषा एवं ग्रन्थ के आन्तरिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि कवि की तृतीय कृति चम्पू शैली में रचित है । यह एक धर्म कथा है जिसमें दान, शील, तप एवं भावना सम्बन्धी अवान्तर कथाओं के सहारे मूल कथा आगे बढ़ती है।
... कथा-वस्तु :- यह कथा छः खण्डों में विभाजित है - (१) रत्नचूड का पूर्व भव :- गौतम स्वामी राजा श्रेणिक को धर्म प्रतिपादन के रूप रत्नचूड की
कथा सुनाते है । कंचनपुर नगर में बकुल माली रहता था । जिनेन्द्र पूजा के कारण यह मृत्यु को प्राप्त कर राजा कमलसेन एवं रानी रत्नमाला से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । क्योंकि रानी ने ।
गर्भ के समय रत्न के ढेले के दर्शन किये इसलिए रयणचूड नाम रखा गया । (२) रत्नचूड का जन्म और तिलक सुन्दरी से विवाह :-एक बार रत्नचूड को हाथी अपहरण कर
लेता है। राजा-रानी बहुत विलाप करते हैं । सुरगुरु नामक नैमितक द्वारा कुमार को वापिस आने की बात कहकर राजा-रानी आश्वस्त होते हैं । उधर हाथी कुमार को एक तालाब में गिरा देता है । वहाँ एक तपस्वी के दर्शन होते हैं । तपस्वी अपने आश्रम में ले जाता है । रत्नचूड तिलक
सुन्दरी का विवाह सम्पन्न होता है। (३) अन्य राजकुमारियों से विवाह एवं राज्य प्राप्ति :- तिलक सुन्दरी को मदनकेशरी विद्याधर
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