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कमलेशकुमार छ. चोकसी
षष्ठी समास के निषेध सूत्रों का प्राचीन सम्भवित पाठ इस प्रकार रहा होगा ।
षष्ठी
न निर्धारणे ।
कर्मणि च ।
तृजकभ्यां कर्तरि च । १९
इस सूत्रपाठ में "कर्तरि च " । यह स्वतन्त्र सूत्र नहीं होगा । यहाँ पठित "तृजकाभ्यां" कर्तरि च।" सूत्र में उपर से “षष्ठी" एवं "न" की अनुवृत्ति आती है । "कर्मणि" यह पद "च" से अनुकृष्य या अनुकृष्ट होगा ।
"च" से
सूत्र के अर्थ में "कर्तरि" पद का सम्बन्ध " षष्ठी" पद के साथ जोडा जायेगा, और इसी प्रकार अनुकृष्ट "कर्मणि" पद को भी “षष्ठी" पद के साथ जोडा जायेगा । इस प्रकार सूत्रार्थ होगा : " तृच् एवं अक प्रत्ययान्त पदों के साथ कर्ता अर्थ में तथा "च" से कर्म अर्थ में भी आई हुई षष्ठी का समास नहीं होता है । "
इस सूत्रार्थ के अनुसार
(१) तृच् प्रत्ययान्तों के साथ कर्तरि षष्ठी के,
(२) अक प्रत्ययान्तों के साथ कर्तरि षष्ठी के,
(३) तृच् प्रत्ययान्तों के साथ कर्मणि षष्ठी के, तथा
(४) अक प्रत्ययान्तों के साथ कर्तरि षष्ठी के प्रयोगों में षष्ठीसमास का निषेध हो जाएगा, जो कि इष्ट है । उपर्युक्त चार के क्रमशः उदाहरण निम्न होंगे
(१) इसका उदाहरण सम्भव नहीं ।
(२) भवत: शायिका । भवतः आसिका ।
(३) अपां स्रष्टा । पुरां भेत्ता ।
(४) ओदनस्य भोजकः । सक्तूनां पायकः ।
SAMBODHI
(१) तृजकाभ्यां कर्तरि । (२) कर्तरि च ।
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काशिकाकार के समय का पाठ :
सम्भव है कि काशिकाकार के समय तक सूत्र में पठित "च" पद लुप्त हो गया होगा । अथवा यह भी सम्भव है कि “कर्मणि च" । इस पूर्व सूत्र में, और फिर तुरन्त ही आनेवाले “तृजकाभ्यां” कर्तरि च । इस उत्तर सूत्र में "च" का पाठ होने से, "च" का वारंवार पाठ उपेक्षित हो गया हो । इस स्थिति में "च" के द्वारा प्राप्त कर्मणि षष्ठी के तृच् और अक से साथ होनेवाले समास के निषेध की व्यवस्था टूटने लगी । अतः
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