Book Title: Sambodhi 2005 Vol 28
Author(s): Jitendra B Shah, K M Patel
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 120
________________ 114 हुकमचंद जैन किया जाता था ॥८३॥ - १. महामन्त्र की साधना द्वारा धन प्राप्त किया जाता था |२८|| ७| इस तरह ग्रन्थ में विभिन्न विद्याओं और मन्त्रों के इतने प्रयोग प्राप्त होने से ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार के समय में मन्त्रविद्या का विशेष जोर रहा होगा ।" तथा प्राचीन परम्परा के ग्रन्थों में प्राप्त इस विषयक सामग्री की भी ग्रन्थाकार को पूरी जानकारी थी। सन्दर्भ सूची १. जैन, हुकमचंद आचार्य नेमिचन्द्र सूरि कृत रयणचूडरायचरियं का समालोचनात्मक संपादन एवं अध्ययन, पृ. ५० से ६० (लेखक का अप्रकाशित शोधप्रबन्ध) : २. सकारिवण वत्थइमहोवयरिण पसत्थ्मुहुते विज्जारम्भसारे गुल्वारे सुहकज्जपसत्थे रिक्खमि हत्थ धवलपंचमीतिहिए । जहाविहीएण्हाओ धवलविलेणविलितो सियवसणो सुमणालंकारसाये रयणचूडकुमारो पूइऊण भावई भतिमंतजंतुसुवरणविवरणि सरस्सई, समप्पिओ तस्स जैन हुकमचंद रयणचूडरायचरियं का समालोचनात्मक संपादन एवं अध्ययन, (लेखक का अप्रकाशित शोधप्रबन्ध ) ॥९॥ - १ 1 • ३. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. २८६ से २९९ ४. जैन जगदीशचन्द्र बृहत्कल्पभाष्य ५ ५९८२ ५. निशीथ - चूर्णि पीठिका २४ की चूर्णि पृ. १६. ६. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. ३४५ - SAMBODHI ७. व्यवहारभाष्य ५, पृ. १३६-३८ ८. औपपातिक - सूत्र १५, पृ. ५२ Jain Education International ९. उत्तराध्ययन टीका १८, पृ. २४२ १०. जैन, हुकमचंद रयणचूडरायचरियं का समालोचनात्मक संपादन एवं अध्ययन, (लेखक का अप्रकाशित शोधप्रबन्ध) ॥१५॥ १ ॥२८॥ २ ॥४५॥-१ आदि For Personal & Private Use Only . www.jainelibrary.org.

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