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६+४+४+२ (= १६ मात्राएं)
प्रथम चरण
द्वितीय चरण
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तृतीय और पंचम चरण
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४+४+ (= १२ मात्राए)
चतुर्थ और षष्ठ चरण ६+ - - ( = १० मात्राप) (प्रथम और द्वितीय तथा चतुर्थ और षष्ठ चरण प्रासबद्ध हैं)
'सोयादेवी राम' में भी प्रथम दो चरण प्रासबद्ध और वदनक छन्द के ही हैं । परन्तु बादकी अन्तरसमा चतुष्पदी का स्वरूप भिन्न है । उनके चरण के नाप १३+१६+१३+१६ इस प्रकार है । इसमें १३ मात्राओं वाले चरण दोहा छन्द के उसी नाप वाले चरण से अभिन्न है । और १६ मात्राओं वा चरण वदनक छन्द के ही हैं । ये दोनों पुरानी रास - कृतियाँ छन्दोरचना की दृष्टि से विशिष्ट हैं । स्वयम्भु और हेमचन्द्र ने रासाबन्ध के छन्दोविधान के विषय में जो नियम दिये हैं, 'सदेशरासक' और 'उपदेश - रसायन - रास' जैसी अपभ्रंश रास-कृतियों में और 'भरतेश्वर बाहुबलि - रास' और 'रेवन्तगिरि-रासु' जैसी प्राचीन भाषाकृतियों में जो छन्दोरचना का ढाचा मिलता है उनसे ये दो रासों में प्राप्त ढांचा विभिन है और यह रचना-परपरा की विभिन्नता का घोतक है । erपभ्रंश से केकर प्रारम्भिक भाषा-साहित्य पर्यन्त रासाबन्ध के स्वरूप आदि में जो विकास हुआ उसके अध्ययन के लिये भी यहाँ पर उत्तरोत्तर प्रकाशित की गई दोनों रास-कृतियों का मूल्य अनन्य है ।
प्रकाशनार्थ हस्तप्रतियाँ सुलभ करने के लिए और प्रकाशन की संगति देने के लिये मैं ला द विद्यामंदिर से अनुगृहीत हूँ ।
सम्पादक