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सुषमा कुलश्रेष्ठ
द्वारा आक्रमण कर बैठ जाते हैं । अपने अन्त करण में प्रवृत्त अबगुणों को निगूहित कर देते है परन्तु उनके वाणीरूप करवाल से उनका हृदय छिन्न होकर उस निगूहित अवगुण को व्यक्त कर देता है ( अर्थात् दुर्जन कितना भी अपने अवगुणों को छिपा - कर सुजन बनने की चेष्टा करता है, तो भी उसकी वाणी से सब स्पष्ट हो जाता है ) ।' यहाँ अर्जुन के वचन में दृत के स्वामी (किरातवेषधारी शिव) के दोषो का वर्णन होने से अपवाद नामक अग है ।
संफेट - रोष से युक्त वार्तालाप सफेट कहलाता है । किरात ० के चतुर्दश सर्ग के २५वें श्लोक में यह अग प्राप्त होता हैं जहाँ अर्जुन शिव - प्रहित दूत को उत्तर देते हुए अन्त मे कहते हैं - यही कारण है कि मैने वन्य पशु-विघाती के अधिक्षेप वचन को सहा । यदि वे बाण लेने आयेंगे तो उसी दशा को प्राप्त होंगे जिस दशा को सर्प की मणि लेने इच्छा करने वाला प्राप्त होता है । यहाँ अर्जुन के वचन में रोष-भाषण होने से सफेट नामक विमर्शाङ्ग है । अर्जुन का
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यह रोष-भाषण उनकी भावी विजय से अन्वित है ।
विद्रव
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-- ना० शा ० और सा० द० में विमर्श सन्धि के अन्तर्गत इस भग का उल्लेख नहीं है । दशरूपक के अनुसार किसी पात्र का मारा जाना, बैंघ जाना (बन्दी हो जाना) आदि (भय से पलायन आदि करना) विद्रव कहलाता है । * किरात के पञ्चदश सर्ग के प्रथम, द्वितीय एवं षष्ठ श्लोकों में पलायनजनित विद्रव प्राप्त होता है जहाँ वर्णन है - 'वृत्रासुराभिघाती के पुत्र अर्जुन के बाणों से वहाँ के सब जीव जन्तु भयभीत हो गये । किराताधिनाथ की सेना भी बड़े बड़े धनुषों का परित्याग कर भाग गई ।' x x x x 'अर्जुन ने भय से विह्वल होकर भागते हुए उन प्रथम गणो का अनुसरण मन्द गति से ही किया क्यों कि १ किरात गुणापवादेन तदन्यरोपणाद् सुशादिरुवस्य समजस जमम् ।
द्विधेष कृत्वा हृदय निगूहत स्फुरणसाधोर्विवृणोति वागसि ॥ १४।१२
२. मा० शाब- रोषप्रथितवाक्य तु सफेटः स उदास । २१/९० दशरूपक-संफेटो रोषभाषणम् ११.४५
सा० द० - सफेटो रोषभाषणम् । ६।१०२
३ किरात मया मृगान्हन्तुरनेन हेतुना विरुद्धमाक्षेपवचस्तितिक्षितम् ।
रामेष्यत्यथ लप्स्यते गति शिरोमणि दृष्टिविषाशिवृक्षत ।।१४।२५
४. बस कपक विजयो भवन्धादि 1918५