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किगतार्जुनीय में बिमानिकपण ष्ठिर के शत्रुओं पर, जिन्होंने अपराध किया है, जिस शासम्पपि से में संप्रामविजयी बन सकता है, हे भगवन् ! उस अखविधा को मुझे प्रदान कीजिये ।" यहाँ कवि ने उपसंहार की ओर बढ़ने की कामना से कामवस्तु के कार्य को सगृहीत किया है । नायक अर्जुन द्वारा भविषाप्रदान के लिए शिव से प्रार्थना का किया जाना काव्यवस्तु के कार्य का संग्रह है । अत यहाँ मादान नामक विमर्शान है।
खेद-जहाँ मानसिक या शारीरिक व्यापार से उत्पन्न ब्रम का वर्णन हो वहाँ खेद नामक मंग होता है। किरात० के भष्टम सर्ग के २२ ३, २३ में तथा २६ वें श्लोकों में यह अंग प्राप्त होता है । एक स्थल पर मुरांगनाओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है-'इन्द्रकोल के शिखरों पर के मार्गों का मनुसरण करती हुई सुरांगनामों के नूतन किसलय के समान कोमस परमोट ऊरमों से, जो हाथी की सूड के सदृश मांसल थे, सिम होकर उस शिखर की समतल भूमि पर भी चलने में असमर्थ हो गये और पा पम पम पर इस प्रकार लड़खड़ाने लगे जैसे मदिरापान करने से पैर अपने पक्ष में नहीं रहते।" यहाँ देवागनाओं के शारीरिक व्यापार से उत्पन्न श्रम का वर्णन होने से वेद नामक अंग है।
इस प्रकार दशरूपकनिदिष्ट विमर्श सन्धि के १३ अगों में से १. मंगों का सन्निवेश भारवि ने किरात में कुशलतापूर्वक किया है। नाme भौर सा० द० में उल्लिखित खेद नामक विमर्शाङ्ग का भी निवेश किराया ।
१ किरात. -- आस्तिक्याशुखमवत• प्रियधर्मधर्म धर्मात्मा शिव ।
संग्रजयां विजयभीश क्या असूखषा हा मूतमा विमुख विवाद। २ मा.सा.-मनश्चेद्यविनिम्पन. समबेद दावा १५
सा. १० --मनश्चेष्टासमुत्पक श्रम वेद इति स्व 11.५ ३ किरात - परोकभिरमहस्तपावरविराव बिलामिया
समेऽपि यात परमानमाश्वरान्महादित प्रवर पदे
सन्दर्भबन्धसुची १ काव्यादर्श (वभिप्रयीत)-वर्ममेड मोरिवलकबोरी-1, पूषा, 10t . काम्यालंकार (भामहप्रणीत)-विहार राष्ट्रभाषा परिषद पटमा, १९61. ३. काव्यालेक्झार (अटप्रमीत)-काममा -१ निर्णय साबर प्रेप, बम्म१९१८. . किरातार्जुनीय (भारविप्रणीत) चौखम्बा संतत पौरोवराणसी, १५.. ५. पसरसक (घनम्बयप्रनीत)-बौखम्बा विधामपन, बनारस, १९५५३.