Book Title: Sambodhi 1972 Vol 01
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 380
________________ २ पं अमृतलाल भोजक [श्री सिंघी जैन ग्रन्थमाला प्रकाशित उद्योतनसूरिकृता कुवलयमालाकथा पृ. ३ पक्ति २९] अर्थात्-हजारों बुधजनों को प्रिय, प्रथम हरिवंशोत्पत्तिकारकहरिवशनामक ग्रन्थ के आद्य रचयिता और हरिवंश [ग्रन्थ] के निर्मल पदों की तरह जिन के पद निर्मल है, उन श्री वदिक-बंदिक [कवि] को भी वन्दन करता हूँ। हरिवंश के आय प्रणेता बदिक अथवा वदिक कवि है उसका सब से प्राचीन तम यह उल्लेख है। कुवलयमाला के इस अवतरण के आधार से श्रद्धेय प० श्री नाथूरामजी प्रेमी के मतानुसार मैंने भी 'हरिवश' के आद्य प्रणेता पउमचरिय के कर्ता विमलसूरि है ऐसा विधान किया था, देखिप-प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित "चउप्पन्नमहापुरिसचरिय" प्रस्तावना पृ० ४६ की टिप्पणी किन्तु अब विशेष अन्वेषण के आधार से मैं अपना पूर्व का विधान बदलता हूँ। अपनी निर्णीत अथवा अनुमानित हकीकत के विरुद्ध म जब प्रामाणिक आधार मिलते हैं तब पूर्व के निर्णय को बदलने में सकोच नहीं होना चाहिए। द्वितीय प्रमाण-"अन्यच्च,ये च पूर्व पादलिप्त-शातवाहन-षट्कर्णकविमलाङ्क-देवगुप्त- बन्दिक-प्रभञ्जन-श्रीहरिभद्रसूरिप्रभृतयो महाकवयो बभूवुः । येषामेकैकोऽपि प्रबन्धोऽद्यापि सहृदयाना चेतास्यनुहरति । तत कथ तेषा महाकवीनां कवित्वतत्वपदवीमनुभवाम ," (श्री सिंघी जैन प्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित 'कुवलयमाला' द्वितीय भाग, में श्री रत्नप्रभसूरिविरचिता कुवलयमालाकथा पृ० २ पक्ति १५-१७)। इस अवतरण में वैदिक कवि का उल्लेख महाकविओं की श्रेणी में आया है। यपि यहा बंदिक कवि का हरिवश के प्रणेता के रूप में उल्लेख नहीं हुआ है । किन्तु श्री उद्योतनसूरिकृत कुवलयमालाकथा की सक्षिप्त रूप में रची हुई इस संस्कृत कथा में उद्योतनमूरिकृत कुवलयमालाकथा का अनुसरण हुआ है यह एक वास्तविकता है, अत यहा प्रथम प्रमाण में निर्दिष्ट गाथा में आये हुए प्राकृत वंदियं शब्द का संस्कृत पर्याय 'वंदिक'नामक विद्वान के रूप में स्पष्ट होता है, इतना कथन पर्याप्त है।

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