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कषि बंदिक
प्रस्तुत प्रमाण के आधार से ही पूज्य आचार्य श्री हेमसागरसूरिजी ने श्री उद्द्योतनसूरिकृत कुवलयमालाकथा के गुर्जरानुवाद में यहाँ प्रथम प्रमाण के रूप में बताई गई गाथा के अर्थ मे व दिक कवि को हरिवंश के आद्यप्रणेता के रूप में बताया है, ( देखिए पृ० ६ तथा उसके उपोद्घात का पृ० २८ ।
श्री हेमसागरसूरिजी के इस विधान का अत्र सूचित प्राकृत और संस्कृत कुवलयमालाकथा के सम्पादक बहुमान्य विद्वान श्री ए एन उपाध्येजी ने प्रतिकार किया है । मुझे आशा है कि 'हरिवंश के आद्य प्रणेता बदिक कवि है' उसके लिए यहां निम्नाकित तीसरा आधार अधिक प्रमाणभूत होगा । साथ ही साथ यह भी बता देता हूँ कि नोचे तीसरे प्रमाण में बताई गई हकीकत से यह स्पष्ट हो जायगा कि दाक्षिण्यचिह्न श्री उद्योतनसूरि और श्री रत्नप्रभमूरि के समय में बन्दिक कवि कृत 'हरिवंश' विद्यमान होना चाहिए ।
तृतीय प्रमाण - 'बृहत् टिप्पनिका' नामकी जैनम्रन्थों की सूची में "हरिवंश चरित सं० बंदिककविकृतं पुराणभाषा निबद्धं नेम्यादिवृत्तवाच्यं ९०००" इस तरह का उल्लेख है । देखिए - जैन कोन्फरन्स द्वारा प्रकाशित जैन ग्रन्थावली पृ० २३७ | इस पर से यह निश्चित हो जाता है कि बंदिक कवि ने संस्कृत भाषा में हरिवंशचरित्र रचा है और वह नौ हजार श्लोक प्रमाण का था । वि. स १५५६ में लीखी गई हुई 'बृहत् टिप्पनिका ' नाम की मूचि के लेखक ने उस समय में जो जो ग्रन्थ विद्यमान थे उनका उल्लेख किया है । इस सूचि को पूज्य पुरातवाचार्य मुनिजी श्री जिनविजयजी ने जैन साहित्य सशोधक ( त्रैमासिक ) के प्रथम भाग के दूसरे अक के अत में मुद्रित किया है । उसमें प्रस्तुत उल्लेख के लिए देखिए पृ० ९ क्रमाङ्क ३०० ।
'बृहत् टिप्पनिका' के प्रस्तुत उल्लेख में स०' लिखा है इससे ज्ञात भाषा में रचा हुआ था यह स्पष्ट है । शब्द का अर्थ प्राचीन भाषा में रचा पुराणशैलि का है यह समझना उचित
होता है कि सूचित हरिवश चरित्र संस्कृत और मागे आनेवाला 'पुराणभाषानिबद्ध' हुआ ऐसा करने की अपेक्षा यह चरित्र लगता है ।
द्वितीय और तृतीय प्रमाण के आधार के अभाव में प्रथम प्रमाण में बताई गई गाथा में आनेवाला बंदिय शब्द का 'बंदिक' अर्थ करना प्राय अशक्य बन जाता । इससे दूसरे और तीसरे प्रमाण का सविशेष महत्व है ।