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पं. अमृतलाल भोजक
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बहुश्रुत आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ( याकिनीमहत्तराधर्मसूनु ) अपनी दशवैकालिक सूत्र की टीका में हरिवंश ग्रन्थ का उल्लेख इस प्रकार करते हैं"खित्तावायोदाहरण दसारा - हरिवसरायाणो, एत्थ महई कहा जहा हरिवसे" (श्रेष्ठि श्री देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फंड द्वारा प्रकाशित दशवैकालिकसूत्र हरिभद्रसूरिकृत विवरण सहित, पत्र ३६ की दूसरी पृष्ठिका) । आचार्य हरिभद्रसूरिने अपनी इस संस्कृत वृत्ति मे प्राकृत भाषा में दिया हुआ यह पाठ स्वरचित है या प्रथान्तर से लिया है यह निश्चित नहीं हो सकता । दशवैकालिक की अज्ञात कर्तृक चूर्णि जो मुद्रित हो गई है, उसमें तथा स्थविर श्री अगस्त्यसिंह गणि की दशवैकालिक चूर्ण में जो स्वल्प समय में ही प्राकृत टेक्स्ट सोसाईटी से प्रकाशित होने जा रही है- मुझे प्रस्तुत स्थान में यह पाठ नहीं मिला । तदुपरान्त इन दोनों चूर्णि में 'हरिवंश' का ग्रन्थ के रूप में परिचय देनेवाले कोई वाक्याश भी नहीं मिले । इन दोनो चूर्णि में हरिवश का उल्लेख अवश्य आता है किन्तु वह राजवंश के रूप में, न कि हरिवशप्रन्थ के रूप में 1