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पूर्वरंग
अहमेदं एदमहं अदमेदस्स म्हि अत्थि मम एवं। अण्णं जं परदव्वं सच्चित्ताचित्तमिस्सं वा।। २० ।। आसि मम पुव्वमेदं एदस्स अहं पि आसि पुव्वं हि। होहिदि पुणो ममेदं एदस्स अहं पि होस्सामि।। २१ ।। एयं तु असब्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढो। भूदत्थं जाणंतो ण करेदि दु तं असंमूढो।। २२ ।।
अहमेतदेतदहं अहमेतस्यास्मि अस्ति ममैतत्। अन्यद्यत्परद्रव्यं सचित्ताचित्तमिश्र वा।। २० ।। आसीन्मम पूर्वमेतदेतस्याहमप्यासं पूर्वम्। भविष्यति पुनममैतदेतस्याहमपि भविष्यामि।। २१ ।। एतत्त्वसद्भूतमात्मविकल्पं करोति सम्मूढः। भूतार्थ जानन्न करोति तु तमसम्मूढः।। २२ ।।
मैं ये अवरु ये मैं , मैं हूँ इनका अवरु ये हैं मेरे। जो अन्य हैं परद्रव्य मिश्र, सचित्त अगर अचित्त वे ।।२०।। मेरा ही यह था पूर्व में , मैं इसी का गत कालमे। ये होयगा मेरा अवरु , मैं इसका हूँगा भावी में ।। २१ ।। अयथार्थ आत्मविकल्प ऐसा, मूढजीव हि आचरे। भूतार्थ जाननहार ज्ञानी, ए विकल्प नहीं करे ।। २२ ।।
गाथार्थ:- [अन्यत् यत् परद्रव्यं ] जो पुरुष अपनेसे अन्य जा परद्रव्य[ सचित्ताचित्तमिश्रं वा] सचित्त स्त्रीपुत्रादिक, अचित्त धनधान्यादिक अथवा मिश्र ग्रामनगरादिक हैं-उन्हें यह समझता है कि [अहं एतत् ] मैं यह हूँ, [ एतत् अहम् ] यह द्रव्य मुझ-स्वरूप है, [अहम् एतस्य अस्मि ] मैं इसका हूँ, [ एतत् मम अस्ति ] यह मेरा है, [ एतत् मम पूर्वेम् आसीत् ] यह मेरा पहले था, [ एतस्य अहम् अपि पूर्वम् आसम् ] इसका मैं भी पहले था, [ एतत् मम पुनः भविष्यति] यह मेरा भविष्यमें होगा, [ अहम् अपि एतस्य भविष्यामि] मैं भी इसका भविष्यमें होऊँगा, - [एतत् तु असद्भूतम् ] ऐसा झूठा [ आत्मविकल्पं] आत्मविकल्प [करोति] करता है वह [ सम्मूढः ] मूढ़ है, मोही है, अज्ञानी है; [ तु] और जो पुरुष [भूतार्थ ] परमार्थ वस्तुस्वरूपको [ जानन् ] जानता हुआ [तम् ] वैसा झूठा विकल्प [ न करोति] नहीं करता वह [ असम्मूढः ] मूढ नहीं, ज्ञानी है।
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