Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 635
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [परिशिष्टम्] ६०१ कर्मबन्धव्यपगमव्यञ्जितसहज-स्पर्शादिशून्यात्मप्रदेशात्मिका अमूर्तत्वशक्ति: २०। सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्त परिणामकरणोपरमात्मिका अकर्तृत्वशक्ति: २१। सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्त-परिणामानुभवोपरमात्मिका अभोक्तृत्वशक्ति: २२। सकलकर्मोपरमप्रवृत्तात्मप्रदेश-नैष्पन्द्यरूपा निष्क्रियत्वशक्ति: २३ । आसंसारसंहरणविस्तरणलक्षितकिञ्चिदूनचरमशरीरपरिमाणावस्थितलोकाकाशसम्मित आत्मावयवत्वलक्षणा नियतप्रदेशत्वशक्तिः २४। सर्वशरीरैकस्वरूपात्मिका स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति: २५। स्वपरसमानासमानसमानासमानत्रिविधभावधारणात्मिका साधारणासाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति: २६। विलक्षणानन्तस्वभावभावितैकभावलक्षणा अनन्तधर्मत्वशक्ति: २७। तदतद्रूपमयत्वलक्षणा विरुद्धधर्मत्वशक्तिः २८। तद्रूपभवनरूपा कर्मबंधके अभावसे व्यक्त किये गये, सहज, स्पर्शादिशून्य (-स्पर्श, रस, गंध और वर्णसे रहित) ऐसे आत्मप्रदेशस्वरूप अमूर्तत्वशक्ति। २०। समस्त, कर्मों के द्वारा किये गये, ज्ञातृत्वमात्रसे भिन्न जो परिणाम उन परिणामोंके करणके उपरमस्वरूप (उन परिणामोंको करनेकी निवृित्तस्वरूप) अकर्तृत्वशक्ति। (जिस शक्तिसे आत्मा ज्ञातृत्वके अतिरिक्त, कर्मोंसे किये गये परिणामों का कर्ता नहीं होता, ऐसी अकर्तृत्व नामक एक शक्ति आत्मामें है।) २१। समस्त, कर्मोंके किये गये, ज्ञातृत्वमात्रसे भिन्न परिणामोंके अनुभवकी ( –भोक्तृत्वकी) उपरमस्वरूप अभोक्तृत्वशक्ति। २२। समस्त कर्मोके उपरमसे प्रवृत्त आत्मप्रदेशोंकी निस्पंदतास्वरूप (-अकंपतास्वरूप) निष्क्रियत्वशक्ति। (जब समस्त कर्मोंका अभाव हो जाता है तब प्रदेशोंका कंपन मिट जाता है इसलिये निष्क्रियत्वशक्ति भी आत्मामें है।) २३। जो अनादि संसारसे लेकर संकोचविस्तारको प्राप्त होते हैं और जो चरम शरीरके परिमाणसे कुछ न्यून परिमाणसे अवस्थित होता है ऐसा लोकाकाशके माप जितना मापवाला आत्म-अवयवत्व जिसका लक्षण है ऐसी नियतप्रदेशत्वशक्ति। (आत्माके लोकपरिमाण असंख्य प्रदेश नियत ही हैं। वे प्रदेश संसार-अवस्थामें सकोचविस्तार को प्राप्त होते हैं और मोक्ष-अवस्थामें चरम शरीर से कुछ कम परिमाणसे स्थित रहते हैं।) २४। सर्व शरीरोंमें एकस्वरूपात्मक ऐसी स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति। (शरीरके धर्मरूप न होकर अपने अपने धर्मोंमें व्यापनेरूप शक्ति सो स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति।) २५। स्व-परके समान, असमान और समानासमान ऐसे तीन प्रकारके भावोंकी धारणस्वरूप साधारण-असाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति। २६। विलक्षण (-परस्पर भिन्न लक्षणयुक्त) अनंत स्वभावोंसे भावित ऐसा एक भाव जिसका लक्षण है ऐसी अनंतधर्मत्वशक्ति। २७। तद्पमयता और अतद्रूपमयता जिसका लक्षण है एसी विरुद्धधर्मत्वशक्ति। २८ । तद्रूप भवनरूप ऐसी तत्त्वशक्ति। (तत्स्वरूप होनेरूप अथवा तत्स्वरूप परिणमनरूप ऐसी तत्त्वशक्ति आत्मामें है। * उपरम = निवृति; अंत; अभाव। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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