Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 651
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [अब पण्डित जयचंद्रजी भाषा टीका पूर्ण करते हैं:-] ६१७ ___ अब अंतिम मंगल के लिये पंचपरमेष्ठीको नमस्कार करके ग्रन्थ समाप्त करते मंगल श्री अरहंत घातिया कर्म निवारे, मंगल सिद्ध महंत कर्म आठों परजारे; आचारज उवज्झाय मुनि मंगलमय सारे, दीक्षा शिक्षा देय भव्यजीवनिकू तारे; अठवीस मूलगुण धार जे सर्वसाधु अनगार हैं, मैं नमुं पंचगुरुचरणकू मंगल हेतु करार हैं। १। जैपुर नगरमांहि तेरापंथ शैली बड़ी । बड़े बड़े गुनी जहां पढ़े ग्रंथ सार है, जयचंद्रनाम मैं हूं तिनिमें अभ्यास किछू कियो बुद्धिसारु धर्मरागतें विचार है; समयसार ग्रंथ ताकी देशके वचनरूप भाषा करी पढ़ो सुनौ करो निरधार है, आपापर भेद जानि हेय त्यागि उपादेय गहो शुद्ध आतमकू, यहै बात सार है। २। (दोहा) संवत्सर विक्रम तणूं, अष्टादश शत और; चौसठि कातिक बदि दशै, पूरण ग्रंथ सुठौर। ३। इसप्रकार श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत समयप्राभृत नामक प्राकृतगाथाबद्ध परमागमकी श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामकी संस्कृत टीका अनुसार पंडित जयचंद्रजी कृत संक्षेपभावार्थमात्र देशभाषामय वचनिकाके आधारसे श्री हिंमतलाल जेठालाल शाह कृत गुजराती अनुवादका हिन्दी अनुवाद समाप्त हुआ। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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