Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार 630 | | कलश | पृष्ठ | | कलश | पृष्ठ / 564 / / 475 495 495 | रागद्वेषविभावमुक्तमहसो | 223 / 512 | व्यवहारविमूढदृष्टयः | 242 रागद्वेषविमोहानां 119 | 264 | व्याप्यव्यापकतातदात्मनि / 49 रागद्वेषाविह हि भवति 218 / 501 | व्यावहारिकदृशैव केवलं / 210 रागद्वेषोत्पादकं तत्त्वदृष्ट्या | 219 / 501 | शुद्धद्रव्यनिरूपणार्पित 215 रागादयो बन्धनिदानमुक्ता- 174 | 393 | शुद्धद्रव्यस्वरसभवनात्किं / 296 रागादीनामुदयमदयं 179 405 रागादीनां झगिति विगमात् 124 270 | सकलमपि विहायाहाय / 35 रागाद्यास्रवरोधतो 133 289 | समस्तमित्येवमपास्य कर्म | 229 रागोद्गारमहारसेन सकलं 352 | संन्यस्यन्निजबुद्धिपूर्वमनिशं रुन्धन् बन्धं नवमिति 162 |350 | संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि / 109 ल | सम्पद्यते संवर एष | 121 लोक: कर्मततोऽस्तु | 165 360 | सम्यग्दृष्टय एव साहसमिदं | 154 लोक: शाश्वत एक एष | 155 336 | सम्यग्दृष्टि: स्वयमयमहं |137 व सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं | 136 वर्णादिसामग्रयमिदं विदन्तु / 39 | 112 | सर्वतः स्वरसनिर्भरभावं | 30 | वर्णाद्या वा रागमोहादयो वा / 37 / 101 | सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं | 173 वर्णाद्यैः सहितस्तथा 42 | 117 | सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य 253 वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो 213 | 481 | सर्वस्यामेव जीवन्त्यां 117 विकल्पक: परं कर्ता / | 218 / सर्वं सदैव नियतं 168 विगलन्तु कर्मविषतरु 230 | 531 | सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्त- 185 विजहति न हि सत्तां | 118 | 263 | | स्थितेति जीवस्य निरन्तराया विरम किमपरेणाकार्य 34 / स्थितेत्यविघ्ना खलु पुद्गलस्य | विश्रान्त: परभावभावकलना | 258 582 | स्याद्वादकौशलसुनिश्चलविश्वाद्विभक्तोऽपि हि 172 |382 | स्याद्वाददीपितलसन्महस | 269 | विश्वं ज्ञानमिति प्रतय॑ | 249 576 | स्वशक्तिसंसूचितवस्तुत्वत्त्वै | वृत्तं कर्मस्वभावेन / 107 / 237 | स्वक्षेत्रस्थितये पृथग्विध- | वृत्तं ज्ञानस्वभावेन 106 237 | स्वेच्छासमुच्छलदनल्प 90 वृत्त्यंशभेदतोऽत्यन्तं | 207 470 | स्वं रूपं किल वस्तुनो | 158 वेद्यवेदकविभावचलत्वाद 147 | 324 व्यतिरिक्तं परद्रव्यादेवं 267 603 | हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां | 102 | व्यवहरणनयः स्याद्यद्यपि 5 / 27 / | 94 / 531 259 / 243 | 286 335 / / | 299 / / | 296 / 74 / 386 579 | 260 | 369 423 | 190 186 | 267 | 595 / 597 |604 580 213 338 | 226 Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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