Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 659
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates श्री समयसारकी वर्णानुक्रम गाथासूची ६२५ | | गाथा | पृष्ठ | | गाथा | पृष्ठ । |३८९ | ५१७ | राया ह णिग्गदो त्ति य रूवं णाणं ण हवदि लोयसमणाणमेयं लोयस्स कुणदि विण्हू व वंदित्तु सव्वसिद्धे वण्णो णाणं ण हवदि वत्थस्स सेदभावो वत्थस्स सेदभावो वत्थस्स सेदभावो वत्थु पडुच्च जं पुण वदणियमाणि धरंता वदसमिदीगुत्तीओ ववहारणयो भासदि ववहारभासिदेण ववहारस्स दरीसणववहारस्स दु आदा । ववहारिओ पुण णओ ववहारेण दु आदा ववहारेण दु एदे ववहारेणुवदिस्सइ ववाहारोऽभूयत्थो विज्जारहमारूढो वेदंतो कम्मफलं अप्पाणं वेदंतो कम्मफलं मए | ४७ । ८९ | वेदंतो कम्मफलं सुहिदो ३९२ । | ५४६ संता दुणिरुवभोज्जा |३२२ | ४५० | संसिद्धिराधसिद्धं ३२१ ४४९ सत्थं णाणं ण हवदि सद्दहदि य पत्तेदि य सद्दो णाणं ण हवदि ३९३ ५४६ | सम्मत्तपडिणिबद्धं १५७ २३८ | सम्मईसणणाणं १५८ २३८ | सम्मद्दिट्ठी जीवा २३८ | सव्वण्हुणाणदिह्रो | २६५ । ३७६ | सव्वे करेदि जीवो। २३२ | सव्वे पुव्वणिबद्धा २७३ | ३८८ | सव्वे भावे जम्हा २७ । ५९ | सामण्णपच्चया खलु ३२४ । ४५२ | सुदपरिचिदाणुभूदा ४६ । ८८ | सुद्धं तु वियाणंतो ८४ | १४३ । | सुद्धो सुद्धादेसो ४१४ ५६३ | सेवंतो वि ण सेवदि ९८ | १६८ | सोवण्णियं पि णियलं ५६ | १०२ | सो सव्वणाणदरिसी ७ । १७ । ह ११ । २२ । | २३६ |३४९ | हेउअभावे णियमा ३८७ | हेदू चदुवियप्पो | ३८८ | ५१६ |होदूण णिरुवभोज्जा |१७५ २६१ | ३०४ ४२६ । ३९० । २७५ | ३९० ३९१ १६१ २४१ १४४ २१६ २२८ | ३३६ २४ । ५५ २६८ । | ३७९ १७३ | २६० ३४ १०९ | १७९ १८६ | १२ १९७ १४६ १६० २७९ | २५ । २९५ । २२६ | २४० १९१ | २८४ ।। | १७८ | २६४ १७४ | २६० । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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