Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 634
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ६०० नीरूपात्मप्रदेशप्रकाशमानलोकालोकाकारमेचकोपयोगलक्षणा स्वच्छत्वशक्ति: ११। स्वयम्प्रकाशमानविशदस्वसंवित्तिमयी प्रकाशशक्ति: १२। क्षेत्रकालानवच्छिन्नचिद्विलासात्मिका असङ्कुचितविकाशत्वशक्ति: १३। अन्याक्रियमाणान्याकारकैकद्रव्यात्मिका अकार्यकारणत्वशक्ति: १४। परात्मनिमित्तक-ज्ञेयज्ञानाकारग्रहणग्राहणस्वभावरूपा परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति: १५। अन्यूनातिरिक्त-स्वरूपनियतत्वरूपा त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति: १६। षट्स्थानपतितवृद्धिहानिपरिणत-स्वरूपप्रतिष्ठत्वकारणविशिष्टगुणात्मिका अगुरुलघुत्वशक्ति: १७। क्रमाक्रमवृत्तवृत्तित्वलक्षणा उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति: १८। द्रव्यस्वभावभूतध्रौव्यव्ययोत्पादालिङ्गितसदृशविसदृशरूपैकास्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति: १९। अमूर्तिक आत्मप्रदेशोंमें प्रकाशमान लोकालोकके आकारोंसे मेचक (अर्थात् अनेकआकाररूप) ऐसा उपयोग जिसका लक्षण है ऐसी स्वच्छत्वशक्ति। (जैसे दर्पणकी स्वच्छत्वशक्तिसे उसकी पर्यायमें घटपटादि प्रकाशित होते हैं, उसीप्रकार आत्माकी स्वच्छत्वशक्तिसे उसके उपयोगमें लोकालोकके आकार प्रकाशित होते हैं।) ११। स्वयं प्रकाशमान विशद ( –स्पष्ट ) ऐसी स्वसंवेदनमयी (-स्वानुभवमयी) प्रकाशशक्ति। १२। क्षेत्र और कालसे अमर्यादित ऐसी चिद्विलासस्वरूप (-चैतन्यके विलासस्वरूप) असंकुचितविकासत्वशक्ति। १३। जो अन्यसे नहीं किया जाता और अन्यको नहीं करता ऐसे एक द्रव्यस्वरूप अकार्यकारणत्वशक्ति, (जो अन्य का कार्य नहीं है और अन्यका कारण नहीं है ऐसा जो एक द्रव्य उस-स्वरूप अकार्यकारणत्वशक्ति।) १४। पर और स्व जिनके निमित्त हैं ऐसे ज्ञेयाकारों तथा ज्ञानाकारोंको ग्रहण करनेके और ग्रहण करानेके स्वभावरूप परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति। (पर जिनके कारण हैं ऐसे ज्ञेयाकारोंके ग्रहण करनेके और स्व जिनका कारण है ऐसे ज्ञानाकारोंको ग्रहण करानेके स्वभावरूप परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति।) १५। जो कम-बढ़ नहीं होता ऐसे स्वरूपमें नियतत्वरूप (-निश्चित्तया यथावत् रहनेरूप-) त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति। १६। षट्स्थानपतित वृद्धिहानिरूपसे परिणमित, स्वरूप-प्रतिष्ठत्वका कारणरूप (वस्तुके स्वरूपमें रहनेके कारणरूप) ऐसा जो विशिष्ट (-खास) गुण है उस-स्वरूप अगुरुलघुत्वशक्ति। (इस षट्स्थानपतित वृद्धिहानिका स्वरूप ‘गोम्मटसार' ग्रन्थ से जानना चाहिये । अविभाग परिच्छेदोकी संख्यारूप षट्थानोंमें पतित-समाविष्टवस्तुस्वभावकी वृद्धिहानि जिससे (-जिस गुणसे) होती है और जो ( गुण) वस्तुको स्वरूपमें स्थिर होने का कारण है ऐसा कोई गुण आत्मामें है; उसे अगुरुलघुत्वगुण कहहा जाता है। ऐसी अगुरुलघुत्वशक्ति भी आत्मामें है।) १७। क्रमवृत्तिरूप और अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जिसका लक्षण है ऐसी उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्ति। (क्रमवृत्तिरूपपर्याय उत्पादव्ययरूप है और अक्रमवृत्तिरूप गुण ध्रुवत्वरूप है।) १८। द्रव्यके स्वभावभूत ध्रौव्य-व्यय-उत्पादसे आलिंगित (-स्पर्शित), सदृश और विसदृश जिसका रूप है ऐसे एक अस्तित्वमात्रमयी परिणामशक्ति। १९ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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