Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 636
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ६०२ तत्त्वशक्तिः २९। अतद्रूपभवनरूपा अतत्त्वशक्तिः ३०। अनेकपर्यायव्यापकैकद्रव्यमयत्वरूपा एकत्वशक्ति: ३१।। एकद्रव्य व्याप्यानेकपर्यायमयत्वरूपा अनेकत्वशक्ति: ३२। भूतावस्थत्वरूपा भावशक्ति: ३३। शून्यावस्थत्वरूपा अभावशक्तिः ३४। भवत्पर्यायव्ययरूपा भावाभावशक्तिः ३५। अभवत्पर्यायोदयरूपा अभावभावशक्ति: ३६। भवत्पर्यायभवनरूपा भावभावशक्ति: ३७। अभवत्पर्यायाभवनरूपा अभावाभावशक्ति: ३८। कारकानुगतक्रियानिष्क्रान्तभवनमात्रमयी भावशक्ति: ३९। कारकानुगतभवत्तारूपभावमयी क्रियाशक्तिः ४०। प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयी कर्मशक्ति: ४१। भवत्तारूपसिद्धरूपभावभावकत्वमयी कर्तृशक्ति: ४२। भवद्भावभवनसाधकतमत्वमयी करणशक्ति: ४३। स्वयं दीयमानभावोपेयत्वमयी सम्प्रदानशक्तिः ४४। उत्पादव्ययालिङ्गितभावापायनिरपायध्रुवत्वमयी अपादानशक्तिः ४५। भाव्यमानभावाधारत्वमयी अधिकरणशक्ति: ४६ । स्वभावमात्रस्वस्वामित्वमयी सम्बन्धशक्ति: ४७। इस शक्तिसे चेतन चेतनरूपसे रहता है-परिणमित होता है।) २९। अतद्प भवनरूप ऐसी अतत्त्वशक्ति। (तत्स्वरूप नहीं होनेरूप अथवा तत्स्वरूप नहीं परिणमनेरूप अतत्त्वशक्ति आत्मामें है। इस शक्तिसे चेतन जड़रूप नहीं होता।) ३०। अनेक पर्यायोंमें व्यापक ऐसी एकद्रव्यमयतारूप एकत्वशक्ति। ३१। एक द्रव्यसे व्याप्य जो अनेक पर्यायें उसमयपनेरूप अनेकत्वशक्ति। ३२। विद्यमान अवस्थायुक्ततारूप भावशक्ति। (अमुक अवस्था जिसमें विद्यमान हो उसरूप भावशक्ति।) ३३। शून्य (-अविद्यमान) अवस्थायुक्ततारूप अभावशक्ति। (अमुक अवस्था जिसमें अविद्यमान हो उसरूप अभावशक्ति।) ३४। भवते हुए (-प्रवर्तमान) पर्यायके व्ययरूप भावाभावशक्ति। ३५ । नहीं भवते हुए (अप्रवर्तमान) पर्यायके उदयरूप अभावभावशक्ति। ३६। भवते हुए (प्रवर्तमान) पर्यायके भवनरूप भावभावशक्ति। ३७। नहीं भवते हुए (अप्रवर्तमान) पर्यायके अभवनरूप अभावाभावशक्ति। ३८। ( कर्ता, कर्म आदि) कारकोंके अनुसार जो क्रिया उससे रहित भवनमात्रमयी (-होवामात्रमयी) भावशक्ति। ३९। कारकोंके अनुसार परिणमित होनेरूप भावमयी क्रियाशक्ति। ४०। प्राप्त किया जाता जो सिद्धरूप भाव उसमयी कर्मशक्ति। ४१। होनेपनरूप और सिद्धरूप भावके भावकत्वमयी कर्तृत्वशक्ति। ४२। भवते हुए (प्रवर्तमान) भावके भवनके (-होनेके) साधकतमपनेमयी (-उत्कृष्ट साधकत्वमयी, उग्र साधनत्वमयी) करणशक्ति। ४३। अपने द्वारादिया जाता जो भाव उसके उपेयत्वमय (-उसे प्राप्त करनेके योग्यपनामय, उसे लेनेके पात्रपनामय) संप्रदानशक्ति। ४४। उत्पादव्ययसे आलिंगित भावका अपाय (-हानि, नाश) होनेसे हानि को प्राप्त न होनेवाले ध्रुवत्वमयी अपादानशक्ति। ४५। भाव्यमान ( अर्थात् भावनेमें आत हुऐ) भावके आधारत्वमयी अधिकरणशक्ति। ४६। स्वभावमात्र स्व-स्वामित्वमयी संबंधशक्ति। (अपना भाव अपना स्व और स्वयं उसका स्वामी है-ऐसे संबंधमयी संबंधशक्ति।) ४७। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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