Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 638
________________ ६०४ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अथास्योपायोपेयभावश्चिन्त्यते समयसार आत्मवस्तुनो हि ज्ञानमात्रत्वेऽप्युपायोपेयभावो विद्यत एव; तस्यैकस्यापि स्वयं साधकसिद्धरूपोभयपरिणामित्वात्। तत्र यत्साधकं रूपं स उपायः, यत्सिद्धं रूपं स उपेयः। अतोऽस्यात्मनोऽनादिमिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रैः स्वरूपप्रच्यवनात् संसरतः सुनिश्चलपरिगृहीतव्यवहारसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपाकप्रकर्षपरम्परया क्रमेण स्वरूपमारोप्यमाणस्यान्तर्मग्ननिश्चयसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रविशेषतया तथापरमप्रकर्षमकरिकाधिरूढरत्नत्रयातिशयप्रवृत्तसकलकर्मक्षयप्रज्वलितास्खलित साधकरूपेण उल्लंघन न करते हुए, [ सन्तः ज्ञानीभवन्ति ] सत्पुरुष ज्ञानस्वरूप होते हैं। भावार्थ:-जो सत्पुरुष अनेकांतके साथ सुसंगत दृष्टि के द्वारा अनेकांतमय वस्तुस्थितिको देखते हैं, वे इसप्रकार स्याद्वादकी शुद्धिको प्राप्त करके - जानकरके, जिनदेवके मार्गको–स्याद्वादन्यायको - उल्लंघन न करते हुए, ज्ञानस्वरूप होते हैं। २६५ । ( इसप्रकार स्यादवादके सम्बन्धमें कहकर, अब आचार्यदेव उपाय - उपेयभाव सम्बन्धमें कुछ कहते हैं: अब इसके (-ज्ञानमात्र आत्मवस्तुके उपाय - उपेयभाव विचारा जाता है (अर्थात् आत्मवस्तु ज्ञानमात्र है फिर भी उसमें उपायत्व और उपेयत्व दोनों कैसे घटित होते हैं सो इसका विचार किया जाता है ) : आत्मवस्तुको ज्ञानमात्रता होनेपर भी उसे उपाय - उपेयभाव ( उपायउपेयपना) है ही; क्योंकि वह एक होने पर भी *स्वयं साधक रूपसे और सिद्ध रूपसे - दोनों प्रकार से परिणमित होता है । उसमें जो साधक रूप है वह उपाय है और जो सिद्ध रूप है वह उपेय है। इसलिये, अनादि कालसे मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्र द्वारा (मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र द्वारा ) स्वरूपसे च्युत होनेके कारण संसारमें भ्रमण करते हुए, सुनिश्चतया ग्रहण किये गये व्यवहारसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रके पाकके प्रकर्षकी परंपरासे क्रमशः स्वरूपमें आरोहण कराये जाते इस आत्माको, अंतर्मग्न जो निश्चय- सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप भेद हैं- तद्रूपता के द्वारा स्वयं साधक रूपसे परिणमित होता हुआ, तथा परम प्रकर्षकी पराकाष्ठाको प्राप्त रत्नत्रयकी अतिशयतासे प्रवर्तित जो सकल कर्मके क्षय उससे प्रज्वलित देदीप्यमान ) हुए जो अस्खलित * उपेय अर्थात् प्राप्त करनेयोग्य, और उपाय अर्थात् प्राप्त करनेयोग्य जिसके द्वारा प्राप्त किया जावे। आत्माका शुद्ध (-सर्व कर्म रहित ) स्वरूप अथवा मोक्ष उपेय है और मोक्षमार्ग वह उपाय है। * आत्मा परिणामी है और साधकत्व तथा सिद्धत्व ये दोनों परिणाम हैं। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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