Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 591
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार सत्थं गाणं ण हवदि जम्हा सत्थं ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्थं जिणा बेंति ।। ३९० ।। सद्दो णाणं ण हवदि जम्हा सद्दो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सद्दं जिणा बेंति ।। ३९१ ।। रूवं णाणं ण हवदि जम्हा रूवं ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं रूवं जिणा बेंति ।। ३९२ ।। वण्णो णाणं ण हवदि जम्हा वण्णो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं वण्णं जिणा बेंति ।। ३९३ ।। गंध णाणं ण हवदि जम्हा गंधो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं गाणं अण्णं गंधं जिणा बेंति ।। ३९४ ।। रसो दुहवदि णाणं जम्हा दु रसो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं रसं च अण्णं जिणा बेंति ।। ३९५ ।। फासो ण हवदि णाणं जम्हा फासो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं फासं जिणा बेंति ।। ३९६ ।। रे! शास्त्र है नहिं ज्ञान क्योंकि शास्त्र कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु शास्त्र अन्य प्रभु कहे ।। ३९० ।। रे! शब्द है नहिं ज्ञान क्योंकि शब्द कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु शब्द अन्य प्रभु कहे ।। ३९१ ।। रे! रूप है नहिं ज्ञान क्योंकि रूप कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु रूप अन्य प्रभु कहे ।। ३९२ ।। रे! वर्ण है नहिं ज्ञान क्योंकि वर्ण कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु वर्ण अन्य प्रभु कहे ।। ३९३ ।। रे! गंध है नहिं ज्ञान क्योंकि गंध कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु गंध अन्य प्रभु कहे ।। ३९४ ।। रे! रस है नहिं ज्ञान क्योंकि रस कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु रस जिनवर प्रभु कहे ।। ३९५ ।। रे! स्पर्श है नहिं ज्ञान क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु स्पर्श अन्य प्रभु कहे ।। ३९६ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com ५५७

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