Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 579
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार ५४५ भुजे, नाहमप्रत्याख्यानावरणीयमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये २५। नाहं प्रत्याख्यानावरणीयमान कषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये २६। नाहं सज्वलनमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये २७। नाहमनन्तानुबन्धिमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये २८। नाहमप्रत्याख्यानावरणीयमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये २९। नाहं प्रत्याख्यानावरणीयमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३०। नाहं सज्वलनमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३१। नाहमनन्तानुबन्धिलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३२। नाहमप्रत्याख्यानावरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३३। नाहं प्रत्याख्यानावरणीयलोभकषायवेदनीय-मोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३४। नाहं सज्वलनलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३५॥ नाहं हास्यनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव सञ्चेतये ३६। मैं अप्रत्याख्यानावरणीयमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। २५। मैं प्रत्याख्यानावरणीयमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। २६। मैं संज्वलनमानकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। २७। मैं अनंतानुबंधिमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। २८ । मैं अप्रत्याख्यानावरणीयमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। २९। मैं प्रत्याख्यानावरणीयमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३० मैं संज्वलनमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३१। मैं अनंतानुबंधिलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३२। मैं अप्रत्याख्यानावरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३३। मैं प्रत्याख्यानावरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३४। मैं संज्वलनलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३५। मैं हास्यनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मके फलको नहीं भोगता, चैतन्यस्वरूप आत्माका ही संचेतन करता हूँ। ३६। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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