Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Parmeshthidas Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 553
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार पुद्गलद्रव्यं शब्दत्वपरिणतं तस्य यदि गुणोऽन्यः। तस्मान्न त्वं भणितः किञ्चिदपि किं रुष्यस्यबुद्धः ।। ३७४ ।। अशुभ: शुभो वा शब्दो न त्वां भणति शृणु मामिति स एव। न चैति विनिर्ग्रहीतुं श्रोत्रविषयमागतं शब्दम्।। ३७५ ।। अशुभं शुभं वा रूपं न त्वां भणति पश्य मामिति स एव। न चैति विनिर्ग्रहीतुं चक्षुर्विषयमागतं रूपम्।। ३७६ ।। अशुभः शुभो वा गन्धो न त्वां भणति जिघ्र मामिति स एव। न चैति विनिर्ग्रहीतुं घ्राणविषयमागतं गन्धम्।। ३७७ ।। अशुभः शुभो वा रसो न त्वां भणति रसय मामिति स एव। न चैति विनिर्ग्रहीतुं रसनविषयमागतं तु रसम्।। ३७८ ।। [पुद्गलद्रव्यं ] पुद्गलद्रव्य [शब्दत्वपरिणतं] शब्दरूपसे परिणमित हुआ है; [ तस्य गुणः ] उसका गुण [ यदि अन्यः ] यदि ( तुझसे ) अन्य है, [तस्मात् ] तो हे । अज्ञानी जीव ! [ त्वं न किञ्चित् अपि भणितः ] तुझसे कुछ भी नहीं कहा; [ अबुद्धः ] तू अज्ञानी होता हुआ [ किं रुष्यसि ] क्यों रोष करता है ? [अशुभ: वा शुभः शब्दः ] अशुभ अथवा शुभ शब्द [ त्वां न भणति ] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् शुणु इति] 'तू मुझे सुन'; [ सः एव च ] और आत्मा भी ( अपने स्थानसे च्युत होकर), [श्रोत्रविषयम् आगतं शब्दम् ] श्रोत्रेन्द्रियके विषयमें आये हुए शब्दको [ विनिर्ग्रहीतुं न एति ] ग्रहण करने को (जाननेको) नहीं जाता। [अशुभं वा शुभं रूपं ] अशुभ अथवा शुभ रूप [ त्वां न भणति] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् पश्य इति] 'तू मुझे देख'; [ सः एव च ] और आत्मा भी (अपने स्थानसे छूटकर), [चक्षुर्विषयम् आगतं] चक्षु-इंद्रियके विषयमें आये हुए [ रूपम् ] रूपको [ विनिर्ग्रहीतुं न एति ] ग्रहण करनेको नहीं जाता। [अशुभ: वा शुभ: गन्धः ] अशुभ अथवा शुभ गंध [ त्वां न भणति ] तुझसे यह नहीं कहती कि [ माम् जिघ्र इति ] 'तू मुझे सूंघ '; [ सः एव च ] और आत्मा भी [घ्राणविषयम् आगतं गन्धम् ] घ्राण इंद्रियके विषयमें आई हुई गंधको [ विनिर्ग्रहीतुं न एति] ( अपने स्थानसे च्युत होकर ) ग्रहण करने नहीं जाता। [अशुभ: वा शुभः रस: ] अशुभ अथवा शुभ रस [त्वां न भणति] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् रसय इति] 'तू मुझे चख'; [ सः एव च ] और आत्मा भी [ रसनविषयम् आगतं तु रसम्] रसना-इंद्रियके विषयमें आये हुए रसको [ विनिर्ग्रहीतुं न एति ] ( अपने स्थानसे च्युत होकर ) ग्रहण करने नहीं जाता। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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