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पुण्य-पाप अधिकार
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कर्म अशुभं कुशीलं शुभकर्म चापि जानीथ सुशीलम्। कथं तद्भवति सुशीलं यत्संसारं प्रवेशयति।।१४५ ।।
शुभाशुभजीवपरिणामनिमित्तत्वे सति कारणभेदात्, शुभाशुभपुद्गलपरिणाममयत्वे सति स्वभावभेदात्, शुभाशुभफलपाकत्वे सत्यनुभवभेदात्, शुभाशुभमोक्षबन्धमार्गाश्रितत्वे सत्याश्रयभेदात् चैकमपि कर्म किञ्चिच्छुभं किञ्चिदशुभमिति केषाञ्चित्किल पक्षः। स तु सप्रतिपक्षः। तथाहि-शुभोऽशुभो वा जीवपरिणाम: केवलाज्ञानमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति कारणाभेदात् एकं कर्म। शुभोऽशुभो वा पुद्गलपरिणामः केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सति स्वभावाभेदादेकं कर्म। शुभोऽशुभो वा फलपाक: केवलपुद्गलमयत्वादेकः, तदेकत्वे सत्यनुभवाभेदादेकं कर्म। शुभाशुभौ मोक्षबन्धमार्गौ तु प्रत्येकं केवलजीवपुद्गलमयत्वादनेकौ,
गाथार्थ:- [अशुभं कर्म ] अशुभ कर्म [ कुशीलं] कुशील है (-बुरा है) [अपि च] और [ शुभकर्म ] शुभ कर्म [ सुशीलम् ] सुशील है (-अच्छा है) ऐसा [ जानीथ ] तुम जानते हो! [ तत् ] वह [ सुशीलं ] सुशील [ कथं ] कैसे [ भवति ] हो सकता है [ यत् ] जो [ संसारं] ( जीवको) संसारमें [ प्रवेशयति] प्रवेश कराता है ?
__टीका:-किसी कर्ममें शुभ जीवपरिणाम निमित्त होनेसे और किसीमें अशुभ जीवपरिणाम निमित्त होनेसे कर्मके कारणोंमें भेद होता है; कोई कर्म शुभ पुद्गलपरिणाममय और कोई अशुभ पुद्गलपरिणाममय होनेसे कर्मके स्वभावमें भेद होता है; किसी कर्म का शुभ फलरूप और किसीका अशुभफलरूप विपाक होनेसे कर्मके अनुभवमें (–स्वादमें) भेद होता है; कोई कर्म (शुभ (अच्छे) मोक्षमार्गके) आश्रित होनेसे और कोई कर्म अशुभ (बुरे) बंधमार्गके आश्रित होने कर्मके आश्रयमें भेद होता है। (इसलिये) यद्यपि ( वास्तवमें) कर्म एक ही है तथापि-कई लोगोंका ऐसा पक्ष है कि कोई कर्म शुभ है और कोई अशुभ है। परंतु वह (पक्ष) प्रतिपक्ष सहित है। वह प्रतिपक्ष ( अर्थात् व्यवहारपक्षका निषेध करनेवाला निश्चयपक्ष) इस प्रकार है:
___ शुभ या अशुभ जीवपरिणाम केवल अज्ञानमय होनेसे एक हैं; और उनके एक होनेसे कर्मके कारणोंमें भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है। शुभ या अशुभ पुदगलपरिणाम केवल पुद्गलमय होनेसे एक है; उसके एक होनेसे कर्मके स्वभावमें भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है। शुभ या अशुभ फलरूप होनेवाला विपाक केवल पुद्गलमय होनेसे एक है; उसके एक होनेसे कर्मके अनुभवमें (-स्वादमें) भेद नहीं होता; इसलिये कर्म एक ही है। शुभ ( अच्छे) मोक्षमार्ग केवल जीवमय है और अशुभ (बुरे) बंधमार्ग केवल पुदगलमय है इसलिये वे अनेक ( -भिन्न भिन्न, दो) हैं; और उनके अनेक होने पर भी कर्म केवल पुद्गलमय-बंधमार्गके ही आश्रित होनेसे कर्मके आश्रयमें भेद नहीं है; इसलिये कर्म एक ही है।
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