Book Title: Samavayangasuttam
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 342
________________ 290 Samavāyāngasūtra से किंतं गंडियाणुओगे ? गंडियाणुओगे अणेगविहे पण्णत्ते, तंजहा- कुलकरगंडियाओ तित्थकरगंडियाओ गणधरगंडियाओ 5 चक्कवट्टिगंडियाओ दसारगंडियाओ बलदेवगंडियाओ वसुदेवगंडियाओ हरिवंसगंडियाओ भद्दबाहुगंडियाओ तवोकम्मगंडियाओ चित्तंतरगंडियाओ 60ओसप्पिणिगंडियाओ उस्सप्पिणिगंडियाओ अमर-नर-तिरिय-निरयगति गमणविविहपरियट्टणाणुयोगे, एवमातियातो गंडियातो आघविनंति पण्णविजंति परूविजति ['दंसिजति निर्देसिज्जति उवदंसिर्जति]। 62से त्तं गंडियाणुओगे। What is this gandikānuyoga ? [Gandikānuyoga) is expounded as many fold, namely: 1. kulakaragandikās, 2. tirthankaragandikās, 3. ganadharagandikās, 4. cakravartigandikās, 5. daśāragandikās, 6. baladevagandikās, 7. vāsudevagandikās, 8. harivansagandikās, 9. bhadrabāhugandikās, 10. tapahkarmagandikās, 11. citrāntaragandikās, 12. utsarpinigandikās, 13. avasarpinīgandikās and birth in states of gods, human beings, animals and plants, infernal beings, various cycles of rebirths and the like are described, instructed, depicted, expounded, demonstrated with example and preached [in this gandikānuyoga]. This is gandikānuyoga. से किं तं चूलियाओ? जण्णं आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुव्वाइं अचूलियाई। से त्तं चूलियाओ। What is this cūlikā ? The first four pūrvas have cūlikās and the remaining (ten) pūrvas [have] no cūlikās. This is cūlikā. दिद्विवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेजा 6अणुओगदारा जाव संखेजातो निजुत्तीओ। से णं अंगठ्ठताए बारसमे अंगे, एगे सुतक्खंधे, चोइस पुवाई, संखेजा वत्थू, संखेजा "चूलवत्थू, 59. पकहरगं हे २ मु०॥ 60. उस्सपिणिगंडियाओ ओसप्पिणिगं' हे १ ला २ मु०॥ 61. से तं खं० हे १ ला १२॥ 63. चूलियाणुओगे २ जण्णं आतिल्लाणं खं० हे १ ला २। चूलियातो आइल्लाणं जे० ला १। “से किं तं चूलियाओ ? चूलियाओ आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिया" इति नन्दीसूत्रे पाठः सू० ११३॥ 64. चूलियाओ नास्तिं जे॥ 65. से तं खं० हे १ ला १, २॥ 66. दारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं मु०। दृश्यतां पृ० ४३४ पं० १३॥ 67. घूल खंसं०। घुल्ल खंमू० हे १, २ ला २॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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