Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Porwal and Company

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Page 12
________________ (४) • संभव है. इस लिये चपलता छोडकर समतासे चलना, जिर स्वपरकी रक्षापूर्वक आत्माका हित साध सके. (ब) उद्भट वेष पहेरना नहि. अति उद्भट वेष-पोषाक धारण करनेसे याने स्वच्छंदपना आदरनेसे लोगोंके भीतर हांसी होती है, इस लिये आमदनी और खर्चा देखकर-तपास कर घटित वेष धारण करना. जिस्की कम आमदानी हो उस्को जुठा दववेवाला पोषाक नहि रखना चाहिये.. तथा धनवंत हो उस्को मलीन-फट्टे टूटे हालतवाला पोषाक रखना वोभी बेमुनासीव है. ८ वी विषम दृष्टिो देखना नहि, ____ सरल दृष्टिसे देखना, इसमें बहोतसे फायदे समाये है. शंकाशीलता टल जाय, लोगोमें विश्वास बैठे, लोकापवाद न आने पावे, स्व परहित सुखसे साध सके, ऐसी समदृष्टि रखनी चाहिये. अज्ञानताके जोरसे बांका बोलकर और बाका चलकर जीव बहोत दुःखी होते है; तदपि यह अनादिकी कुचाल सुधार लेनी जीवको मुश्कल पडती है. जिस्की भाग्य दशा जाग्रत हुई है वा जाग्रत होनेकी हो वोही सीधे रस्ते चल सकता है, ऐसा समझकर धूम्रकी मुठी भरने जैसा मिथ्या प्रयास नहि करते सीधी सडकपर चलकर स्वहित साधन निमित्त सुज्ञ मनुष्यको चकना नहि चाहिये. ऐसी अच्छी मर्यादा समालकर चलनेसे क्रुषित हुवा दुर्जनभी क्या विरुद्ध बोल सके ? कुच्छभी छिद्र नहि देखनसे किंचित्- एडी तेडी बातमी नहि बोल सकता है. इस लिये निरंतर समदृष्टि रखकर चलना के जिसे किसीको टीका करनेकी जरुर न पडे. ९ अपनी जीव्हा नियममें रखनी, जीव्हाको वश्य करनी, निकम्मा बोलना नहि, जरुरत मालु

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