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को स्वीकृत करें । विना इस विधि के स्वीकृत किये आपके मुंह की गरम वास्प द्वारा वाह्य सचित वायु कायिक जीवों की तथा तदाश्रत त्रस जीव उड के मुह में गिर कर मर जाने वाले जीवों की घिराधना से आप हरगीज वच नहीं सकते। खेर ऐसी बात तो अनेको है, सभी बातों को लिखी जाए तो एक बड़ा भारी ग्रन्थ तैयार हो जाए। किन्तु मुझ तो पाठको को जो खास मुद्दे की बात लिख दिखाना है, उसी लाइन पर श्राना है। वे ये हैं कि आज कल मूर्ति पूजक भाईयों की तरफ से अनेक ग्रंथ छप कर तैयार हो के नवीन साहित्य के रूप में वाहार प्रगट हो रहे हैं उनको देख २ मनुष्यों के दिलों में वडा भारी विचारों का परिवर्तन होरहा है। उन परिवर्तन रूप विचारों की तरहिणी की तरङ्गों में गोते मारते हुए वे कतिपय सज्जन गणों में से कतिपय तो कहते हैं कि मुखपत्ती का मुख पर वांधना यह सनातन से चला पाता है, तो कोइ कहता है कि आधुनिक समय से चला, इस प्रकार के भ्रमात्पादक प्रश्नों पर विचार कर मेरे परम पूजनीय गुरु वर्दी,धर्माचार्य जगत् वल्लभ जैन धर्म के सुप्रसिद्ध चला १००८ श्री चौथमल जी महाराज की श्राशा से विक्रमाद १६७२ के साल पालनपुर के चातुर्मास से इस विषय को मैंने अपने हाथ में लिया और श्राज दिन विक्रमीय सं १९८६ के फाल्गुणी पूर्णिमा तक के परिश्रम द्वारा पूर्वाचायों के रचित प्राचीन साहित्य ग्रन्थों के अवलोकन करने पर मुख-वत्रिका मुख पर वांधने विषयक प्राचीन चित्र और तद चिपयक प्रमाण जो कुछ भी मुझे उपलब्ध हुए हैं, उन को 'सचित्र मुख-पत्रिका निर्णय, के रूप में जो सजन गण मुख-वस्त्रिका मुख पे वाधने की सच्ची सनातनी जैन प्रणाली क्या है इस खोज में है, उन महानुभावों