Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 93
________________ मुखवस्त्रिका । [५३] १२८ पृष्ठ पर लिखते हैं, कि “यति लोग अपनी जिन्दगी को निहायत मुस्तकिल मिजाजी से वसर करते हैं और वह अपने मुह पर एक कपड़ा वाधे रखते हैं, जो कि छोटे २ कीड़े वगैरः को अन्दर जाने से रोक देता है। पुनः इन्साइक्लो पेडिया पुस्तक नं० ६ पृष्ट नं० २६८ सन् १६०६ में लिखते है कि यति लोग अपनी जिन्दगी निहायत सवर और इस्तकलाल के साथ चसर करते हैं और एक पतला कपड़ा मुह पर वांधे रहते हैं, और एकान्त में बैठे रहते है। इसी प्रकार मिस्टर ए पफ रडलाफ होनले पी एच, डी. व्य विनजेन ने 'थी उपासक दशांगजी' सूत्र का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है, उस पुस्तक के पृष्ट ५२ नोट नम्बर २४४ में वह निम्न लिखित प्रकार से है, पढ़िये। "मुखपत्ति" जिसको सस्कृत में 'मुखपत्रि' अर्थात् मुख फा ढक्कन जिससे सूक्ष्म जीव उड़ने वाले मुख के अन्दर प्रवेश न कर सके, इसलिये छोटा, सा कपड़ा मुख पर बांधते हैं, उसे मुख पत्ति कहते हैं। पुनः देखिए ! महात्मा मोहनदास करमचन्द गाधी विरचित आरोग्य दिग्दर्शन पृष्ठ १२५२ हवा के विषय में लिखते हैं कि (हमारी कुटेवों से हवा कैसे खराव होती है और उसे खराब होने से कैसे बचाया जा सकता है, यह वात हम जान चुके । अब हम इस वातका विचार करते हैं कि हवा कैसे ली जावे) __हम पहले प्रकरण में लिख पाये है कि हवा लेने का मार्ग नाक है,मुंह नहीं। इतने पर भी वद्भुत ही कम ऐसे मनुष्य है जिन्हे श्वास लेना पाता हो । वहुत से लोग मुंहसे श्वास लेते हुए भी देखे जाते हैं। यह टेव नुकसान करती है। बहुत ठंडी हवा

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