Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ [५६] मुखवनिका। करते थे। परन्तु इस भारत भूमि में अनीश्वरवादी और उच्छ हल धर्म नहीं ठहर सका । गोतम बुद्ध के सिद्धान्त कुछ ऊंचे थे परन्तु वे अनीश्वरवादी थे अतः अन्य देशों में घे भले ही अपने धर्म का झंडा गाड़ने में समर्थ हुए हों परन्तु भारत वर्ष में उनका झण्डा उखड़ गया। आज भारत में उनका अनु. यायी शायद कोई हो। ___इसीसे में कहता हूं कि धार्मिक ऊच्छलता कभी किसी दशा में अच्छी नहीं है। सनातन जैन धर्म की नीव अहिंसा पर खड़ी है उसमें हिंसा का प्रचार करना नितान्त भृल और अद्र दार्शता है। __ मेरे मन्दिर मार्गीय साधु महात्माओं सद्गृहस्थों! श्राप लोग मुखवस्त्रिका को मुख पर नहीं बांधकर हाथ में रखने में बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। श्रसंख्य अदृश्य प्राणियों की हत्या का दायित्व अपने ऊपर ले रहे हैं । कोई शास्त्र इसमें सहमत नहीं है फिर आप क्यों नहीं मानते हैं। . मैने एक तरह से नहीं बल्कि हर तरह से सिद्ध कर दिया है कि मुखवस्त्रिका को मुख पर ही वांधना चाहिए । मैंने युक्ति चाद, शब्दार्थ, और शास्त्रों के निर्विवाद चीर वचन से सावित किया! आपके ग्रन्थों से सावित किया !! अन्यान्य धर्मावलम्बियों के ग्रन्थों से सावित किया!" और सावित किया स्वास्थ्य की दृष्टि से । अर्थात् श्रायुवेद और डाक्टरी पुस्तकों से इसको लाभ दायक सावित किया है। कई कुतर्कवादियों का कथन है कि, नाक वायु सेवन का मार्ग है उसमें कृड़ा छार श्रादिन प्रवेश करजा इसलिए कु. दरत ने उसमे बाल उगाए है । इसी प्रकार हानि की सभा. वना होती तो प्रकृति मुंह की प्राड़ के लिए भी जरूर कोई चमड़े की पट्टी अथवा वालो की रचना करती।

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101