Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ मुखवस्तिका। [५५] - भी अच्छी नहीं है। धार्मिक उच्छहलता से संसार में जितनी क्षति हुई है उतनी और किसी से भी नहीं हुई होगी, और उस क्षति की पूर्ति आज तक नहीं हुई। वाममार्गियों के अश्लील पाचरणों एवम् दूपित ग्रन्थों ने आज तिहाई हिस्से की दुनियां को पथ भ्रष्ट कर रक्खी है। महाराज वेण को हुए आज कई हजार वर्ष होगए है परन्तु उसकी निन्दनीय प्रथाओं का अन्त अाज तक भी नहीं हुआ और जव तक उन्ही बातों से ग्रन्थों के पवित्र पृष्ठ रंगे हुए रहेंगे तव तक उन काअन्त होना कठिन ही नहीं बल्के असंभव है। ___यह सब धार्मिक उच्छृङ्खलताओं के ही तो परिणाम है। में पहले ही कह चुका हूं कि, भारत वर्ष शृद्धालु देश है। इस में अन्ध विश्वासियों का ही सदा से वाहुल्य रहा है। यहां पर समाज जिसको वड़ा श्रादमी मान लेता है फिर उसके कार्यों को वह श्रालोचना की दृष्टि से कभी नहीं देखता । चाहे वह किसी को तार दे, अथवा डूवो ही दे। चुपचाप उसका अनुः गमन करना ही समाज का कर्तव्य हो जाता है। और इसी लिए तो इस उक्ति का प्रादुर्भाव हुआ है "महाजनो येन गतः स पथा" अर्थात् महापुरुष जिस ओर होकर गए वही मार्ग है। और यदि महापुरुष ही उच्छृहल अथवा पथ भ्रष्ट हो जाएं तो समाज की क्या दशा होती है ? यही न, कि समाज पथ भ्रष्ट होजाता है। यह देश धर्म का कीड़ा क्षेत्र है । यूरोप, एशिया इत्यादि देशों को धर्म की दीक्षा पूर्व काल में यहीं से मिला करती थी। यहीं के ऋषि मुनि और साधु सन्त सबके गुरु थे। और वे लोग द्वीपान्तर में परिभ्रमण कर धर्म प्रचार किया

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101