Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 31
________________ विराजते मुखाम्भोजे, साधूनां मुखवत्रिका रक्षिका सूक्ष्म जन्तूनां, दुरिच्छेद शास्त्रका,, व्याख्या-भो पाठकाः सनातनीय श्वेताम्बरीय जैन यतीनां साधूनां मुखाम्भोजे वदन-कमले, मुखवस्त्रिका विराजते शोभते कीदृशा, मुखवस्त्रिका ? उक्नं च, एगविसंगुलायाय, सोलसंगुल विच्छिरणोः चउकार संजुयाय, मुहपोती एरिसा होई॥ अर्थात् एकविंशत्यंगुला परिमित दीर्घा,षोड़शांगुला परिमितविस्तीर्णाच वतुराकारसंयुक्ता, एतादृशा रूपा मुखवस्त्रिका चारु दवरकेन सह मुखे वध्यमाना विराजते-शोभते, पुनः कथं भूता? मुख वस्त्रिका बाह्य दृष्ट्या ऽ दृष्ट सूक्ष्म जन्तूनां-जीवानाम् रक्षिका पालयित्री । पुनः कथं भूता? दुरितच्छेद शत्रिका, पाप नाशने पटीयसी, श्रायुध रूपाऽस्ति ।।

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