Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 59
________________ मुसवस्त्रिका। [२३] - - से खण्डन करके दलालो प्रादिद्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि, मुखवस्त्रिका हाथ में नहीं रक्खी जावे मुख पर बांधी जाये। श्रव में आगे के विश्रामो में इस के शास्त्रीय प्रमाण देता है। मुख वस्त्रिका मुख पर ही बांधी जाती है, इसके प्रमाण । युक्तियों और दलीलों द्वारा तो मुखवत्रिका को मुखपर बान्धना सावित ही है परतु शास्त्रीय प्रमाणों से भी इसे प्रमाणित करना आवश्यक है । अतः इस के प्रमाण दिए जाते हैं। मन्दिर मागियो के ग्रन्थ क्या कह रहे हैं मन्दिरमार्गियों का परम माननीय 'महानिशीथ' नामक सूत्र के सातवें अध्याय में लिखा है " कन्नो ठियाएवा, मुहण तगेण वा ॥ विणा इरियं पडिक्कम्म, मिछुक्कड पुरिमहं वा ॥' अस्यटीका-कर्णेस्थितया मुखपातिकया इति विशेष्यं मुखान्तकेन वा विना इर्ष्या प्रतिक्रामेत् मिथ्यादुष्कृतं पुरिमद्धि वा प्रायश्चितम् । अर्थात् ( मुहणतगणवा) मुखवस्त्रिका [ कन्नोठियापवा ] कानों में वाधे (विणा) विना ( हरियं) मार्ग में गमनागमन का विचार ( पडिक्कम्मे ) करे तो उस को ( मिलक्कड') मिथ्यादुष्कृत का दण्ड [वा ] अथवा [ पुरिमट्ठ ] दो प्रहर पर्यन्त भूखा रहने का दण्ड अगीकृत करना चाहिप - पाठक ' कितनी कठोर अाशा है। मुखवस्त्रिका मुख पर गंधे बिना कोई एक पद भी नहीं चल सकता । और यदि चले तो कड़ी सजा । आश्चर्य है कि, ऐसे स्पष्ट और वज्र गभीर शब्दों को सुनने में बधिर होकर एक और हट जाते

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