Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ मुखवस्त्रिका। [२५] प्रमाण देता हू और वह भी मन्दिर मार्गी भाईयों के ग्रन्थ में से ही। देखिए ! इन के 'ओघ नियुक्ति' नामक ग्रन्थ की १६६-६४ वीं चूर्णी की गाथा में लिखा है। संपाइम रयणु, परमझण ठावयंति मुहपोति । नासं मुहं च बन्धइ, तीएव सहि पमझन्तो ॥ अर्थात् खुले मुंह बोलने से जीवों की हिंसा होती है अतः मुखवस्त्रिका को मुखपर वांधना चाहिए । इस ही प्रकार " श्रीप्रकरणरत्नाकर" के अन्तर्गत मन्दिर मार्गियों के श्राचार्य श्रीनेमिचन्द्र सूरि ने अपनी " प्रवचनसारोद्धार" नामक रचना में मुखवत्रिका को जीव हिंसा निवृत्ति के लिए मुखपर वाधने का आदेश किया है, जो उफ्तरचना के पृष्ठ १४१ पर अङ्कित है। क्या अब भी किसी को यह शंका हो सकती है कि, मुखवस्त्रिका वाष्प द्वारा मरजाने वाले जीवों पर दया करने का साधन नही है ? पुस्तक पर गिरने वाले थूक कण की रोक का कपड़ा है ? हर्गिज नहीं ! मुखवस्त्रिका को मुख पर ही वांधना चाहिए इसके और भी प्रमाण देता हू । देखिए ! मन्दिर मार्गी साम्प्रदायिक पूर्वाचार्य श्रीमद् चिदानंद महाराज रचित " स्याद्वादानुभवरत्नाकर" ग्रन्थ के ५४ वे पृष्ठ पर ३३ वीं पंक्ति में उल्लेख है कि 'कान में मुंहपति गिसकर व्याख्यान नहीं देना यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि प्राचार्यों ने परम्परा से कान में गिराकर व्याख्यान देने का ही उपदेश किया है" और उस ही ग्रन्थ में उन श्राचार्य ने श्रागे चलकर पुनः लिखा है “कान में मुहपत्ति बांध कर व्याख्यान देना चाहिए ' विचार शील पाठक ! इससे बढ़कर और क्या प्रमाण हो सकते है और मुखवस्त्रिका मुख पर बांधने में अब कोई क्या सन्देह कर सकता है, आप ही कहिये ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101