Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 81
________________ मुखवस्त्रिका। [४३] उक्त इङ्गलिश का हिन्दी अनुवाद डाक्टर जेम्स स्काट साहब फरमाते हे "सूरत या ज़मार या चैतन्य को एकस्थित करने के लिए मुंह को वन्द कर नाक द्वारा सांस लेना यह पहला नियम है । इस नियम में कोई छिपा हुआ भेद नहीं है। वास्तव में यह कोई कठिन वात भी नहीं है। यदि श्राप चाहते हो कि हम स्वस्थ हो जायं, हमारी मस्तिप्कशक्ति बहुत अधिक बढ़जाय, ( आंतरिक और वाह्य दोनों ही) शरीर में पवित्र साफ खून पैदा हो, चित्त में स्थैर्यता उत्पन्न हो, मस्तिष्क की चैतन्यता और विचारशक्ति की स्थिरता, शरीर की सम्पूर्ण अस्थियों और जालों की मजबूती इत्यादि बातें चाहते हो तो श्राप श्वास नाक के द्वारा लेने का नियम स्वीकार करें। यह नियम तन्दुरस्ती और इस्तकलाल को ताकत देता है, और बढ़ादेता है । यह चित्त की स्थिरता में भंग डालने वाले नियमों को-विचारों को कूड़ा करकट की भांति नीचे विठा देता है। श्राप जानते होंगे कि जितने उच्च मस्तिष्क, बलवान या संतोषी और अपनी वात के धनी ऐतिहासिक समय में मेरे और आपके अनुभव से विद्वान, राजनीतिक धार्मिक शूरवीर और व्यापारी हुए हैं। और उन्नत बने हैं। वे केवल संतोष से खामोशी अख्तियार करने से । मुंह को हमेशा वन्द रखो। सिर्फ उस वक्त खोलो जवकि तुम्हें खाना खाना हो या दांतो को साफ करना हो अथवा किसीसे बात चीत करनी हो । उस घनत मत खोलो जव कि तुम्हारे मुंह से कोई वात ऐसी

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