Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 90
________________ [४०] मुखवस्त्रिका। म्बन्धी अनेक पदार्थ रहते है यथाः- फिथेलिया, ऊन या रूई के रेशे व सजीव प्राणियों के निर्जीव शव के टुकड़े व सचित वस्तु के शरीर सम्बन्धी नसें व श्रातें या हड़ियों के टुकड़े। ___इन सव खरावियों का असर श्वासोच्छ्वास के न्यूनाधिक परिमाण पर व इन वस्तुओं की प्राकृतिक दशा पर निर्भर है। (अर्थात् ये वस्तुएं तीखी नोक वाली है, या चोठी नोक वाली इत्यादि) ये सदा अपने स्वास्थ्य को विगाड़ देती है और इनसे मुख्य बीमारियां केटेग, ब्रोंकाइटिस, फिवरोइड निमोनिया एस्थमा. इम्फिसिमा इत्यादि पैदा होती है। रेणु मिश्र वायु के सेवन से फेफड़े की बीमारियों के खास चिन्ह डिस्प्निया तथा पिटारेशन हैं। २ वायु प्राश्रित रही हुई अन्य ग्बगवियों का असर इसी भांति चिथड़ों में व ऊन में काम करन वाले रज से हानि उठाते है । ऊन के गुच्छों की धूल से पन्क्स पैदा होता है। घट्टी टांचने यासिलावट, मोती काटने वाले या जमाल कागज बनाने वाले, चाक सुधारने वाले, चक्की चलाने वाले. वाल काटने वाले. खान खोढने वाले. ऊन रंगने वाले,कपड़ा बुननेवाले श्रादि सब रज मिथित दुसर परमाणु युक्त वायु के सेवन से फेफड़े सम्बन्धी अनेक बीमारियों से पीड़ित रहत है। उदाहरणार्थ:-पीतल बनाने वाले जस्त ( in 1 ) श्राक्साइट (oude) के कणका श्वास लेते हैं । और उनको डायरिया या क्रम्प (crn Imp) हो जाता है । दियासलाई बनाने वाले फास्फरस की चिनगारियों का श्वास लेते हैं. और उनके जबड़ों में नेक्रोमोस हो जाता है। इनके सिवाय चेपी रोग भी लागू हो जाते है। जसे टाईफान्ड, उवर, मस माना, टयूवर केटिम इत्यादि जो कि हवामें हमेशा रजम्प में वितरित होते है।

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