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मुखवत्रिका |
निकलने को हो जिससे कि हृदय धड़कने लगे । और तवि - यत पर रंज आय । मुंह को खुला रखने में कई सूरतें बहतरी की हैं, लेकिन वह कायमुल मिजाजी करार दिल में हो तो कामयाबी ( सफलता ) की पहली सीढ़ी दिल के करार के साथ जवान रोकना या खामोशी है ।
वैद्यक विधान से भी मुंह को बन्द करना चाहिए। मुंह के बन्द करने से दिमाग में रोशनी और शारीरिक तंदुरस्ती बढ़ जाती है। ज़िन्दगी आराम से गुजरने लगती है। यदि आप इन सब बातों से भी अधिक लाभ चाहते हों तो विश्वास वल अर्थात् खयाल का जमाना संतोष और इस्तकलाल दिलेरी और दिल को कायम रखने को हाथ से न छोड़ें। जब आपको इस ताकत के बढ़ाने में कुछ मजा और खुशी हासिल होने लगेगी तो सूरत या इन्सान का बोलना इस नाम को छोड़ कर दूसरे नामसे मोसुम हो सकता है यानी कहलाई जा सकती है। अर्थात् परमात्मा से मिल जाना या परमात्मा कह लाना ।
पुनः अन्य अंग्रेज विद्वानों की सम्मतियें पढ़िये.
The religions of the world by John Murdock. L. L. D. 1902 page 128
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"The yatı has to lead a life of continence, he should wear a thin cloth over his mouth to prevent insects from flying into it "
Chamber's Encyclopaedia Volume VI London 1906, Page 268:
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