Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 35
________________ मुखवस्त्रिका | [ ३ ] ओर इस के पीछे, इसकी आवश्यकता और लगाने का कारण बतलाऊँगा, और साथ यह भी बतलाऊँगा कि, इसका प्रचार क व से हुआ। और कौन कौन लोग इसको मानते हैं । इसके पीछे शास्त्रीय प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध करूगा कि इसको हाथ में रखना चाहिये अथवा मुॅह पर बंधी रखना और सव के अंत में हिंसा निवृति के अतिरिक्त स्वास्थ्य की दृष्टि से इसके शारीरिक लाभ भी बतलाऊंगा । " यह पुस्तक मैंने किसी वाद विवाद अथवा अपना पाण्डित्य दिखाने की दृष्टि से नहीं लिखी है, वल्के पक्षपात शून्य हो कर अपने विचारों मुश्राफिक सच्ची और शास्त्रीय विवेचना की है। मुखवस्त्रिका का क्या अर्थ है और वह है क्या पदार्थ | मुखवास्त्रिका का अर्थ है ' मुख का वस्त्र' मुँहका कपड़ा अर्थात् मुँह पर बाधने का वस्त्र । श्रोर मुखवस्त्रिका शब्द शिरोवेष्टन ( पगड़ी ) सिरपेच, अंगरक्षिका, ( अगरखी) और पदरक्षिका, ( पगरखी ) की भांति योगिक शब्द है । अर्थात् सार्थक शब्दों मैं से है । जैसे शिर पर लपेटी जाने वाली ( पगडी ) का नाम शिरो वेन, अंग की रक्षा करने वाली का नाम अंग रक्षिका और पद की रक्षा करने वाली का नाम पदरक्षिका पड़ा है । और उम्र ही प्रकार मुँह पर बांधने वाली का नाम मुखवस्त्रिका पड़ा है। और इस ही लिए मुखवस्त्रिका को योगिक शब्द कहा है | इस शब्द का अर्थ इतना वोधगम्य और सरल है कि, सामान्य पढा लिखा मनुष्य भी भली प्रकार समझ सकता

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