Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 33
________________ मेरे विचार। आज कल लोगों की अभिरुचि समाज सुधार की ओर प्रवलता से बढ़ी हुई है। और पुस्तकें भी सामाजिक विषय की ही विशेष लिखी जा रही हैं, परन्तु समाज सुधार का प्रारंभ कहाँ से होता है इसको बहुत थोड़े लोग जानते है । और इसीलिए उन्हें सफलता भी नहीं मिलती है। संसार में वैद्यों की कमी नहीं है परन्तु अच्छा निदान करने वाले चिकित्सक बहुत थोड़े हैं। दवा देदेना जितना सामान्य और अदना काम है उतना रोग की परीक्षा करना नहीं। और गेग की परीक्षा के विना ओषधी सेवन कराना रोग को घटाना नहीं, प्रत्युत वढाना है। आज कल. क अधिकांश वैद्यों की जैसी दशा है, ठीक वैसी ही दशा हमारे समाज सुधारको की भी हो रही है। उन्ह भी उन वैद्यों की तरह यह नहीं मालूम है कि, वे किस मर्ज की दवा कर रहे है। वन्धुओं ! मैं बतलाता हूँ कि समाज सुधार का समारंभ कहा से होना चाहिए । समाज सुधार का प्रारंभ धार्मिक जगत् से किया जावे । धार्मिक उन्नति किए विना सामाजिक उन्नति हो ही नहीं सकती । धार्मिक विचारों को एक और रख कर सामाजिक उन्नति की आशा करना दुराशा मात्र है। धार्मिक जीवन के विचार सामाजिक जीवन कृपण जीवन है।

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