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मुखवत्रिका ।
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मुखवस्त्रिका को हाथ में रखना चाहिए ?
अथवा मुंह पर बंधी रखना ?
मुखवास्त्रिका के अस्तित्व में तो किसी को सन्देह ही नहीं है । जैन श्वेताम्बरीय साधु अर्थात् २२ सम्प्रदाय वाले तथा मूर्ति पूजक एवम् श्रावक भी इसे मानते हैं । क्योंकि, जैनागमों में स्थल स्थल पर इसका वर्णन मिलता है, यदि प्रमाण रूप में उन सब को उद्धत करें तो एक बड़ा पोथा इसीका बन जा सकता है । परन्तु जो वात निर्विवाद सिद्ध है उसका वर्णन करना अनावश्यक और निरर्थकसा है। फिर भी जिनकी इस में जानकारी नहीं है उन पाठका के लिए थोड़े से प्रमाण की अवश्य आवश्यकता है। एतदर्थ इसके प्रमाण वताता है और वे भी ऐसे वैसे ग्रन्थों के नहीं, भगवती सूत्र इत्यादि के, जिनको श्वेताम्बरी साधु एवम् श्रावक भी अपने माननीय और उपास्य सूत्र मानते हैं। देखिए १ भगवती सूत्र के दूसरे शतक के पांचवे उद्देश्य में क्या लिखा है ?
तएणं से भगवं गोयम छट्ठखमणं पारणगं सि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ बियाए पोरिसाए झाण झियाए तइयाए पोरिसीए अतुरियं अचवलं असं भते मुहपोत्तियं पडिलेहई २ त्ता भायणायं वत्थायं पडिलेहई २ त्ता भायणायं पम्मजई २ त्ता भायणायं उग्गिएहई २ त्ता।
अर्थात् उसके वाद गौतम स्वामी ने वेले ( दो दिन के