Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

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Page 47
________________ मुखत्रिका | [ १३ ] नाम है और देश धार्मिक नहीं हो सकता, परन्तु इस जगह लक्षणा से 'भारतवासी लोग धार्मिक है, यह अर्थ लिया जाएगा । ठीक इस ही प्रकार 'मुखवस्त्रिका का अर्थ भी मुखपर वधने वाला वस्त्र लिया जायगा । क्या, लक्षणा से इस प्रकार का अर्थ करना माननीय है ! और उस का प्रयोग कहां तक होता है ! ऐसे प्रश्न तार्किकों के फिर भी होसकते हैं । ऐसी दशा में इसका उत्तर देदेना भी अनुचित नहीं होगा । और वह भी युक्ति युक्त और उदाहरणों सहित होना चाहिए । - प्रिय पाठक ! इसको तो सारे विद्धान मानते है कि, लक्षरणा, साहित्य का एक मुख अंग है । और लक्षणा ही काव्यं को भाव पूर्ण बनाती है । उस काव्य का, काव्य जगत् में कोई श्रादर नहीं होता जिस में शब्दों का बाहुल्य और अर्थ की अल्पता हो । उत्तम काव्य तो वह है जो थोड़े शब्दों में ज्यादह भाव व्यक्त कर सके और उसका तात्पर्यार्थ लिया जा सके । और ऐसा जो काव्य होगा उसमें और २ अंगों के साथ लक्षणा ज़रुर होगीं ऐसी स्थिति में लक्षणा से अर्थ करना क्यों सही और सत्य नहीं है । श्रवश्य है । जिस को थोड़ा भी साहि त्य का ज्ञान है वह इसके मानने में ज़रा भी श्रागा पीछा नहीं होसकता है अब मुझे यह समझाना है कि, इस का प्रयोग कहां तक होता है सो इसका प्रयोग तो प्रत्येक मनुष्य की जिह्वा द्वारा नित्य प्रति हुआ ही करता है और उस में तार्किकों का कोई गुजर ही नहीं है। देखिए ? कोई किसी को यह कहे कि पानी लाना ता क्या तार्किक महाशय उसमें यह शका करेगा कि, लोठे में भर कर लाने का अर्थ इस में से नहीं निकलता है । गलत ! पानी जब

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