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मुखवारका।
के जीवों को जलचर इस लिए कहते है कि, वे जल में विचररण करने वाले हैं। उड़ने वाले जन्तुओं को नभचर इस लिग कहते हैं कि, वे श्राकाश गामी है। इनका वर्णन कहां तक की रूं । ऐसे नामों की संख्या अपरिमित है । इन उदाहरणों से मेरा भाव यह है कि, जैसे उपराने नाम कामक साथ है, उस ही प्रकार मुखवस्त्रिका का नाम भी काम से ही रचा गया है। अर्थात् मुखपर बंधती है इसीलिए उसका नाम मुखवस्त्रि का पड़ा है।
यदि मान्दिर मार्गी भाइयो के कथनानुसार यह हाथ में रखेन का वस्त्र होता तो इसका नाम हस्ताडा अथवा रू माल पड़ता । मुखवीस्त्र का कभी नहीं होता। और सूत्रों भी मुहपातिय, के स्थान में 'हत्थपोत्तिय, लिखा मिलता अव इस म तार्किकों की यह शंका होसकती है कि, सूत्रो मुहपोत्तियम् शब्द का अर्थ केवल 'मुंह का वस्त्र ही होता फिर वाधना अर्थ कैसे लगाया । सो इस शंका का निर करण इस प्रकार हो सकता है कि, सूत्र भाव गंभीर होते उन्ह में थोड़े शब्दों में लम्या चौड़ा श्राशय भरा रहता है सूत्रों को समझाने के लिए पगिडतों ने उन पर वृत्ति श्री व्याख्या की रचना की है। पोर उनको, छोटे छोटे सूत्रों के बोधगम्य बनाने के लिए महान भाप्यों का निमार्ण कर पड़ा है। यही क्यों सूत्र, शब्द की व्याख्या ही का टाखे "त्रयन्ति यति अल्पानर बहन्याणि इति सत्रम् श्रय थोड़े अन्नग में बहुन अर्थाहा उसे सूत्र कहते है
सूत्रों के अर्थ में प्राय लक्षणा होती है। जैसे भारत वर्ष। मिक है, उसमें श्रमिधान के अनुसार भारत वर्ष एक देश: